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________________ ( २६६ ) तवारिख - तीर्थ- काकंदी - और - क्षत्रीयकुंडगाव, बनवाकर पूजनका बंदोबस्त करे, और तीर्थकों फिर से कायम करे, निहायत उमदाबात है, बीस-पचीसहजार रुपये खर्च करनेसे तीर्थ कायम होसकता है, दुनियादारीके कामों में हजारांह खर्च होते है धर्ममें अगर उतने खर्च कियेजाय कितना फायदाहो, रामचंदजी लक्ष्मणजीका मंदिर और सीताकुंड यहां पर बनाहुवा है इसलिये वैदिकमजहब वाले भी इस जगहकों तीर्थ मानते है, सीतामढीसे रैलमें सवार होकर उसी रास्ते वापिस दरभंगा-समस्तीपुर- सेमरियाघाटमोकामाघाट-होते - मोकामा जंक्शन आना, और मोकामा जंकशनसे रैलमें सवार होकर डर्मा वहीं मंकाथा - होते लखीसराय-उनरना, रैलकिराया साडेतीन आने, [ तवारिख - तीर्थ - काकंदी, ] लखीसराय से बेलगाडीके रास्ते रवानाहोकर यात्री काकंदी नगरीजाय, जोकरीव (६) कोशके फासलेपर वाके है, और आजकल काकंदगांवके नामसे मशहूर है, तीर्थकर सुविधिनाथमहाराज इसीकाकंदीमें पैदाहुवे, चवन - जन्म - दीक्षा - और - केवलज्ञान-येचारकल्याणिक उनके यहांहुवे, सुग्रीवराजाकेघर मृगशीरवदी ( ५ ) मूलनक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, कइअतक उनोने काकंदीके तख्तपर अमल्दारी कि, पेस्तर दीक्षाके एकसालतक उनोने यहांपर खूब - खैरात - कि, मृगशीरवदी ( ६ ) के रौज - दुनिया के एशआराम छोड़कर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार किइ, और कातिकसुदी (३) के रौज-उनकों यहां केवलज्ञान पैदाहवा, इंद्रदेadaगेरा उनकी खिदमत में आतेथे, पेस्तर यहनगरी बडी रवन्नकपरथी. बडेबडे दौलतमंद वाशिंदे यहांपर आवादथे और बडेबडे खुशनसीब राजेमहाराजे यहांपर अमल्दारी करचुके है, धन्नाकाकंदी नामके जैनमुनि - इसीका कंदीके रहनेवालेथे, जिनोने तप Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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