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( २६४ ) तवारिख-तीर्थ-मिथिला. हुवाकि-दुनियामें अकेला रहनाही बहुत बहेत्तर है, जहां बहुत है वहांही झगडाहै, अगर मुजे इसवीमारीसे-आराम मिला फौरन ! में-दुनिया छोडकर अकेला जंगलकी राह लुंगा, और दिक्षा इख्तियारकरके जंगलमें तपस्या करुंगा, आखीरकार खुशकिस्मतिसे उनकों आराम हुवा और सलतन छोडकर जंगलका रास्ता लिया, तनाहीमेंजाकर तपकरने लगे, एकमरतबा इंद्रने आनकर उनका इम्तिहानलिया, और कहाकि-आपकी रानीयां-और-रियाया आपकेवास्ते रोरही है, नमिराजरिषिने कहा-न-मेरा कोइहै-न-में किसीकाहूं. कहांका राजा ! कहांकी रानी ! मेरा धर्म मेरे शाथ है, जोशख्श परलोकका रास्ता साफकरना चाहे धर्म करे. ए ! नाजरीन ! ! इन बातोंपर जरा गौर करो, कैसे कैसे एश-आराम छोडकर राजाओने भी दीक्षा इख्तियार किइहै, और तुम अबतक अपने एशआराममे गाफिलहो, मगर यादरहे ! जोकुछ धर्म करोगे वही बहेत्तर होगा. आदमीका चोला-वारवार-नहि मिलता, मगर अपशोस इसबातकाहैकि-बहुतसे अनजानलोग धर्मको पहिचानतेभी नहीं, उनको इसतेहरीरका असर होना मुश्किल है,
तीर्थकर महावीरस्वामीने यहांपर (६ ) चौमासे गुजारे. आठमे-गणधर इसी मिथिलाके रहनेवालथे, चोथे निन्हव-जो-तीथंकर महावीरके निर्वाणवाद (२२०) वर्ष पीछे पैदा हुवेथे-इसी मिथिलाके रहनेवालेथे, मिथिलाके नामसें मुल्कका नामभी मैथिल मशहूरहुवा, पेस्तर-विदेह-मुल्क कहलाताथा, पानीकी बहुतायतमें कुवे-चावडी-और-तालाव-जावां मौजूदथे, अबभी किसीकदरकम नही. जलकी तरीसे वनास्पतिकी तरक्की यहां हमेशांसे रहती रही, केले के पेंड इसकदर होतेथेकि-सालभरकी फसल सारा मुल्क नही-खासकताथा, दूध यहां इसकदर होताथाकि-हरशख्श एक
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