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________________ तवारिख-तीर्थ-मिथिला. ( २६३ ) श्विनी नक्षत्रके रौज उनका-यहां-जन्महुवा, बडीउमर होनेके बादउनोने-दुनयवी एशआराम छोडकर मृगशीर मुदी (११) केरौज-यहां दीक्षा इख्तियार किइ, केवलज्ञानभी उनको यहांही पैदाहुवा, जगह जगह फिरकर उनोने लोगोकों तालीम धर्मकी दिइ, इंद्रदेवते वगेरा उनकी खिदमतमें आतेथे, एकीसमें तीर्थकर नमिनाथ इसीमिथिलामें पैदाहुवे, विजय राजाके खानदानमें विमा रानीकी कुखसें श्रावणवदी (८) के रौज उनका यहां जन्महुवा, कइ अर्सेतक उनोने मिथिलापर अमल्दारी किइ, और आषाढवदी (९) मीके-रोज दुनिया फानीसरायकों छोडकर यहां उनोने दीक्षा इख्तियार किइ. मृगशीरमुदी (११) के-रौज-उनको यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवते वगेरा उनकी खिदमतमे आतेथे, राजा-रामचंद्रजीकी पटरानी महासती सीता इसीमिथिलामें जनकराजाके घर पैदाहुइ, और यहांही उसका स्वयंवरमंडप रचागयाथा, जब रामचंद्रजीने धनुष्यचढाया सीताने खुशहोकर उनके गलेमे वरमाला पहनाइ, नमिराज नामकेराजा-इसी-मिथिलाके राजाहुवे, एकमरतबेका जिक्रहेकि-जब-ये-बुखारकी तेजीमें गाफिलहुवे हकिमोने सलाहदिइ आप तमामबदनपर चंदनका लेप करावे, इनकी बहुतसी रानियांथी, पासके कमरोंमें उनोनेजब वास्ते राजासाहबके चंदन घीसना शुरुकिया, चंदनके घीसनेकी वजहसे हाथोमें-जो-कंकन पहनेहुवेथे आपसमे अवाज करनेलगे, राजाने मुनाकि-यह-क्या ! माजराहै, ? उनोने जवाबदिया-हम लोग-आपकेलिये-जो-चंदन घीसते है उससे चुडियांकी अवाज निकलती है, नमिराजाने हुकमदियाकि-सब-चुडिये निकालडालो सिर्फ : एक एक रहनेदो, उनोने ब-हुकमराजाके वैसाही किया, तब अवाज बंद होगइ, इस बातपरसे राजाकों-यह-खयाल पैदा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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