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( २१८ ) तवारिख-तीर्थ-अयोध्या. उसखाते में देवे, मंदिरकी मरम्मत के बारेमें अगर कोई यात्री अपने मुनीम-गुमास्तेको भेजकर मरम्मत करादेवेतो बहूतही बहेतरहै, रत्नपुरीकी जियारतकरके यात्री-फैजाबाद वापिसआवे, और फैजावादसें तीर्थ अयोध्याको जावे, जो करीव दो-तीन कोशके फासलेपर वाके है, रैलभी जातीहै, और इक्का बगीभी जाते है जिसकी जैसी मरजीहो-उस रास्ते जाय, तबारिख तीर्थ रत्नपुरीकी खतमहुइ,
___ ( तयारिख-तीर्थ-अयोध्या, ) अयोध्या शहर निहायत पुराना और रैलवेका टेशनहै, विनि ता-कौशला-और-साकेतपुर इसीके नामहै. अवल तीर्थकर रिपभदेवमहाराज इसी अयोध्या पैदाहुवे, चवन-जन्म-और दीक्षाये तीनकल्याणक-उनकेयहांहुवे, नाभिकुलकरके घर-मरूदेवाजीकीकुखसे चैत वदी ( ८ ) मी-पूर्वाषाढा नक्षेत्रके रोज उनका यहां जन्महुवा, बहुतअर्सेतक उनोंने यहांपर अमलदारीकिइ, और दीक्षालेनेके पेस्तर एकसाल जुतबारित बहुत खैरात किइ, चैतवदी(८) मीके रोज दुनयवीकारोबारको छोडकर उनोने यहां दीक्षा इख्तियार किइ. एकहजार वर्षतक छदमस्थ हालतमेरहे और फाल्गुनबदी (११) के रोज उनको यहां केवलज्ञान पैदाहुवा, इंद्रदेवता. वगेरा उनकी सेवामें आतेथे,-दुसरे तीर्थकर अजितनाथ महाराजभी इसीअयोव्यामें पैदावे, चवन-जन्म-दीक्षा-और केवल ज्ञान-ये-चारकल्याणक उनके यहांहुवे, जितशत्रुराजाके घर विजयारानीकी कुखसे माघसुदी (८ ) मी-रोहिणी नक्षत्रके रौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत अर्सेतक उनोंने अयोध्यापर अमल्दारी किइ, दीक्षाके पेस्तर एक सालतक उनोने यहां खैरातकिइ और माघबंदी ( ९) मीके रौज दुनियाके एशआराम छोडकर उनोने
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