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( १६) सवाने-उमरी. बादशाहने कहा तुमारेदोनोंका इम्तिहानलेकर नौकरीकी जगहढुंगा, आजरातकों तुम दोनो एककोठरीमें बंदरहो, गरजकि-बादशाहने दोनोकों रातकेवख्त एककोठरीमें बंदरखे. जब आधीरात होगइ तद- . वीरको बडीकहनेवाला बोला देख ! में !! तदवीरकरताहु और कोठरीके तमामआलोंमें हाथफेरताहुं अगर कोइचीज मिलगइतो अछाहै. तकदीरबडीकहनेवालाबोला, खुशीकेशाथ अपनीतदबीर चला,मुजेइससेकोइनाराजीनही, बादशाहने-दो-लडु-जिसमें एकमेंसोनामहोररखीहुइथी-एकखालीथा-अवलसे-एकआलेमें रखवादियेथे, तदवीर वालेने अंधेरेमें इधरउधर हाथफेरा-तो-उसको-एक आलेमेसे-दो लड्ड मिले, उनकोलेकर तकदीरवालेके पासआया और कहनेलगा देख ! मेने कोशिशकिइ तो मुजे दो-लड्डु-मिले है, ले ! एक तुजे देताहूं. एक-में-खाताहुं, ऐसाकहकर एक उसकों दिया एक आप खाया, तकदीरवालेके-लड्डमें-सोनामहोर निकली, तदवीरवालेके लड्डमें-कुछ नहीनिकला, अखीरमें तदबीर वडीमाननेवाला बोला, तदवीर कैसी बडीचीजहै ? अगर तकदीरके भरुसे बेठेरहतेतो-लड्ड कहांसे मिलते ?-जवाबमें तकदीरवाला बोला. मैने-कौनसीतदबीर किइथी ? जो-मुजे-सोनामहोर-और-लड्डु-मिला ? इस बातकों मुनकरतदबीरवाला चुपहोगया-और-अपनेदिलमें कहनेलगा बेशक तकदीर वडीचीजहै.-इसतरह एकएक बातपर बहेस हुवाकरतीथी,
[संवत् १९३८ का-चौमासा शहर लुधिहाना, !
वादवारीशके अमृतसरसे रवानाहोकर-पटी-जिरा-और फिरोजपुरकी सफरकरतेहुवे फरीदकोट गये. और वहांसे फिरदुवारा जिरा-आनकर निकोदर-जालंधरकी सफर करतेहुवे शहर लुधिहाना आये-और-संवत् ( १९३८ ) की वारीश वहांपर गुजारी,
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