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सवाने-उमरी.
(१५)
[ संवत् १९३७ का-चौमासा शहर अमृतसर,]
बादवारीशके होशियारपुरसे रवानाहोकर-जालंधर-निकोदर जिरा-पटी-अमृतसर-नारोवाल-सनखतरा-गुजरानवाल-रामनगर-और-लाहोरकीसफर करतेहुवे वापिस अमृतसर आये, और संवत् (१९३७ ) की वारीश वहांपरगुजारी, सिद्धांतचंद्रिका व्या. करण जोगइसालमें पढना शुरुकियाथा-जिसमेकरीव तीनहजार श्लोककेदर्ज है मुहजबानीयादकरके खतमकरलिया, औरफिर अमरकोशपढना शुरुकिया, मूत्रदशवैकालिक-और-उत्तराध्ययन-बाचे, कभीकभी लोगोकों तालीमधर्मकी देतेथेऔर आपसमे तकदीर तदबीरकेबारेमे बहेसभी होतीथी, महाराज फरमातेथे तकदीर और तदबीर दोनों अपनीअपनीजगहपर बेशक ! ठीकहै, मगर तदबीरसे तकदीर बडीचीजहै. तदबीरकभी खालीभी जाती है, तकदीर खाली नहीजाती, अगर तकदीर उल्टीहोतो-तदबीर चाहेजितनीकरो कुछ-कारआमदनही होसकती, ख्याल करो ? अगर तकदीरके फेरनेका कोइउपावहोता-तो-रामचंद्रजी-और-पांचपांडव वनवासकों क्योजाते ? आराम और तकलीफका होना बेशक ! अपनी तकदीरके ताल्लुकहै, जबतकदीर उल्टीआती है-तो-धुद्धिभी वैसीही होजाती है, जंगल में पडे हुवेकों अगर तकदीर अछीहो-तो-उसका कोइकुछनहीकरसकता. और अगर तकदीरबुरीहो-तो-महेलमेबेठे हुवेकोभी-तकलीफआनपडती है, एकशख्श फायदेकेलिये तदवीर करताहै-मगर-उसको फायदा नहीमिलता, एकशख्श हलखेडता है और राज्यपानेकी कोइकोशिशनहींकरता, मगरउसकीतकदीर अछीहो-तो-उसकों-किसीनकिसीसुरत राज्य मिलजाताहै, एक दफे दो-शख्श-एक बादशाहके पास नौकरीके लिये गये, उसमें एक कहताथा तकदीर वडी है, और एककहताथा तदवीर बडी है,
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