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________________ (१४) सवाने-उमरी. फैलगइहै, आरामकेपीछे तकलीफ और संपदाकोपिछे विपदा आपसे आप आकर सवार होजाती है. हमारे दिलकीवात दिलमे रहगइ, तुम दिनरात हमारी आंखोकेसामने फिरतेहो. हम अपने दिलकों बहुतेरा समझते है मगर किसीमुरत चैन नहीमिलता, अगर सोचाजायतो धर्मकरना हमेशांकेलिये अछाहै, दुनिया छोडकर दिक्षा इख्तियारकरनेका वख्त हमाराथा, तुमारा नहीथा, हम इसवातपर खयाल करते हैकि-तुमसे दीक्षाकाभार कैसे उठसकेगा, हमकों अपनी जींदगीमें इतनाफिक्र कभी-नहींहुवाथा. जैसे तुमारे चलेजानेसे हुवाहै, रातकोनींद नहींआती, खानपान अछा नहीलगता और धंदेरोजगारमें दिल नही जमता. हम क्या ! अपने रिस्तेदार लोग सबकहते हैकि-तुमकों ऐसाकरना बिल्कुल मुनासिब नहीथा. महाराजने उनखतोको पढकर एकखत इस मजमूनका लिखाकिबेशक ! आपको जहुवाहोगा, में-आपको वगेर जाहिरकिये इसलिये चलाआयाकि-सायत ! आप मुजे आने-नहीदेते, मेराइरादा धर्मपरथा. इसलिये अबआप खुशहोकर लिखेकि-तेरी-दीक्षा फतेहमंदहो, उनोने महाराजकेखतको पढकर अपनेदिलकों थांभलिया और-समझलियाकि-उनका दुनयवीकारोबारसे इतनाही संबंधथा, जोकुछ ज्ञानिदृष्टभाव होताहै, हर्गिज ! गलत नहींहोता, ऐसासोच कर जवाब लिखाकि-हम-अब-और-क्या ! कहे ! ! जोकुछहुवा अछा है, हमसे इस दुनियामें आकर कुछ धर्म नहीं बना, तुमारी दीक्षा फतेहमंदहो-और-तुमारी अछीगति हो,-महाराजकों इल्म पढनेकी ख्वाहेस हरवख्त बनीरहतीथी, गुरुमीकी खिदमत करनेमें मुताबिक अपनीताकातके कमी-नही-करतेथे, और-काम-क्रोधलोभ-मत्सर अभिमान और दंभ इनसे हमेशां परहेज रखतेथे. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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