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सवाने-उमरी.
(१३) लहसन मौजूदहै. जिसशख्शके दोनोंपेरोमें किसीपेरपर तिल-यालहसनहोवे वहहमेशां मुल्कोंकीसफर करतारहे. महाराजके बायेपावके उपरकेकनारेपर लालरंगका लहसन मौजूद है -
( हस्तरेखा और दिगरइशारे जिस्मके खतम हुवे,-)
दिक्षा इख्तियार करनेकेबाद महाराजने सिद्धांतचंद्रिका व्याकरण पढना शुरुकिया, और जेठमहिनेमें अपने गुरुजीकेशाथ मलेरकोटसे रवानाहोकर लुधिहाना-जालंधर होतेहुवे-होशियारपुरगये, और संवत् ( १९३६) की वारीश मुकाममजकुरपर गुजारी. मोसमवारीशमें जैनमुनिकों सफर करना मनाहै. इनदिनोमें शहर भावनगरसे महाराजके चचासाहबकेकइखतआये, उनमेंलिखाथाकि तुम-वगेरकहेसुने यहांसे चलेगये-और साधु होगये-हमको बडारंज हुवाहै, वे-दिन-बहुतखुशीके जातेथे जबकि-तुमको हम अपने घरमें देखतेथे, होनहारकेआगे किसीकाकुछबस नहीचलता, हमारी बुद्धिपर पर्दापडगयाकि-हम-तुमकों अकेले घर छोड़कर चलेगये. जबहम घरआये तो-मालूम हुवा-हमारे घरके बहुमुल्यरत्न-हमारे नेत्रोके सितारे-और-हमारे दिल बहलानेके खिलौने-तुम-घरछोडकर चलेगये, तुमकों ऐसाकरना हर्गिज ! मुनासिवनहीथा. तुमारे चलेजानेकारंज हमारेदिलपर इसकदर जमगयाहैकि-जिसकाबयान हमकुछ लिख नहीसकते, हमकों दुनिया सुनसान दिखाइदेती है, हमारादिल अजहद तकलीफपाताहै, हमको उमेदथीकि-थोडेरौजमें तुम घरकाकाम संभाललोगे. लेकिन ! हमारीउमेद खाखमें मिलगइ, आदमीके इरादे कभी पुरे नहीहोते. जिस चीजकों-न-चाहो वह पास आतीजाती है और जिस चीजकी चाहना करो वह दूर दूर चलीजाती है, असलमें इसवख्त तरहतरहकी फिकर हमारेदिलपर
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