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( ४२ ) तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. पथ्थरमारा और पीछेफिरफिरकर निहायततकलीफदिइ, उसतक लीफसे उसकामरना होगया, औरतुं ! वहांसेअपनेरिस्तेदारोंकेशाथ आगेकों रवानाहुइ, आगेजाकर दूसरेपडावमेंतेने एकजैनमंदिरदेखा, और उसमेंजाकर जिनेंद्रकी मूर्तिके दर्शनकिये और बडीभक्तिकेशाथ देवकीइबादतकिइ, जवरसोइजिमनेकी तयारीमथी-एक-साधवीवहांतेनेदेखी, उनकेपासजाकर धर्मकीवातेमुनी और खानपानकीची. जदेकरनिहायत खिदमतकिइ, वहांसेचलकर बहुतमुदततक तुं ! मुसाफरीकरतीरही, वैताब्यपर्वतकी दखनलाइनकोंजाकर वादकितने कअर्सेके फिरअपनेघरकोलोटी, फिरवहांसें मरकर इसीभरुअछके कोरंटबनमें शकुनीपरींदहुइ. जिससर्पको तेनेपथरसेंमाराथा-वह शिकारीहुवा, तेने उसकेघरसे मांसकाटुकडाउठाया, और उसनेतेरेको तीरसेंमारडाली. मैने--जोतुजकों परमेष्टिमहामंत्र मुनायाथा बदौलतउसकी-तुं ! सिंहलद्वीपमें राजकुमारीहुइ, जो तेनेपूरवभवमें जिनमंदिरकेदर्शन और साधवीकी खिदमतकिडथी बदौलतउसकीतेने-यहां जैनधर्मपाया,
मुदर्शना अपनापूरव भवमुनकर निहायतखुशहुइ, और कहने लगी आपकी-मैं-बहुतआसानमंदडं, और तारीफकरतीहूं आपके ज्ञानकीकि-ज्ञानीहो-तो-ऐसेहो, मुदर्शना उसरौजसे निहायतधर्म पावंदहुइ. और-जो-मंदिरबनवाना गुरुकियाथा पुराकिया. नर्मदा नदीकनारे कोरंटवन-शकुनीका-और-बोडवृक्षका-आकार, शिकारी उसकेतीरसे किसकदर अपनामरनाहुवा-जैनाचार्यने किसतरह प. रमेष्टीमहामंत्र मुनायाथा-वगेरा जोजोहाल अपनेपरगुजराथा-तमाम आकार शंगमर्मरपथरमे उकेरवाकरवनवाया. और अपनेपूरवभवके नामसे उसमंदिरकानाम शकुनिका विहाररखा, धर्मशाला--औरदानशाला वगेरावहांवनवाइ, और तीर्थकेखर्चेकेलिये बहुतदौलतदे
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