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तवारिख-अश्वावोध-और-शकुनिकाविहार. (४१ ) शाहुकार जोकि-हमारेसिंहलद्वीपकों गयाथावहभी हमारेशाथहै, अगरआपका हुकमहो-तो-तमामफौज-लवाजमा-औरसुदर्शनाशहरमें आवे, राजानेकहा जल्दीआओ :-मैं-बहुतखुशहुं, मंदिरकेलिये जितनीजमीनचाहिये लेलो ! मैं चाहताहु-बडेजुलुससे मुदर्शनाकी पेंशवाइकिइजाय, औरशहरम कयामकरायाजाय, दिवाननेजाकर सब हाल मुदर्शनाकोंकहा. तयारीकिइ, औरभरुअछकेराजानेवडेजलसेके शाथ शहरमलाकर राजमहेलकेपास कयामकरवाया, मुदर्शनानेअश्वाववोध तीर्थकी जियारतकिइ. औरतीर्थकर मुनिसुव्रतस्वामीकी मूर्तिकी पूजाकरके उपवासव्रतकिया औरकहनेलगी शुक्रहैआजका रोज-जो-मुजेकमनसीबको इसतीर्थकीजियारत नियामतहुइ. जोजो शख्श तीर्थोकीजियारतकों जातेहैलाजिमहै-उनकों वहांजाकर कुछ व्रतनियमकरना,
मुदर्शनाने भरुअछमें जमीनमौललेकर जैनमंदिरखनवाना शुरु किया औरबहुतरौजतकवहारही, धर्मचुस्तआदमी तीर्थकी-जमीनको अपनेवरसें भी बढकरसमझतेहै, जिसजैनाचार्यने उससुदर्शनाके जीवकों शकुनिकाकेभवमें परमेष्टिमहामंत्र भुनायाथा-भरुअछमेंपधारे आमलोग और सुदर्शनाउनके दर्शनोंकॉगइ, और पुछाकि-महाराज ! मैनेपूरवभवमें क्यापपाकियाथाकि-जिससे-मैं-शकुनिकाहुइ ? और किससबबसे शिकारीने मैरीजानलिइ. आचार्य ज्ञानीथे उनोनेकहा तुं ! शकुनिकाकेभवसें पेस्तरकेभवमेंएक-शंखनामके राजाकीलडकीथी, जोकि-चैताढयपर्वतकी उत्तरलाइनमें सुरम्यानगरीकी अमल्दारीकरताथा, उसभवमेंतेरानाम विजयाकुमारीथा, एक रोजजयतुं ! अपने रिस्तेदारोंकेशाथ दखनलाइनको जातीथीरास्तेमें एक नदीकेकनारे अपनादिल बहलानेकेलियेइधरउधर घुमनेकोंगइ, वहांपर एकवडालंबा सांपनदीकनारे फिरतादेखा. तेनेउसको एक
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