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(४०) तवारिख-अश्वावबोध-और-शकुनिकाविहार. पासआये. औमुजेपरमेष्टीमहामंत्रसुनाया. मैंनेउसमंत्रकों अछासमझा
औरदिलमेंयकीनलाइकि-दुनियामें-उमदाबस्तु धर्महै, तकलीफके मारे-मैं-वहां-मरगइ, औरआपकेघरआनकर लडकीपैदाहुइ, शिकारीमांसकाटुकडालेकर अपनेमकानकोंगया. राजाइसवातकोसुनकर ताज्जुवकरनेलगाकि-दुनियाज्ञानकीवरावर कोइचीजनही, मेरीलडकी निहायतखुशनसीबहैकि-जिसकोंपूरवभवकाज्ञान हुवा, मुदर्शनाकहनेलगी अपनेवालिदसें अवमुजे भरुअछशहरजानेदो, उ. सजमीनकोंदेखनेकी वडीउमेदहै, औरवहांजाकर उसतीर्थकी जियारतकरुंगी, राजानेअपनेदिवानकों हुकमदियाकि-बडीहिफाजत से इसकों भरुअछलेजाओ, धनेश्वरसाहुकारकोभी कहाइसकोअपनेसाथ लेतेजाना, समुंदरकेरास्तेकेलिये कइजहाजशाथदिये. नोकरचाकर चपरासी फौज तरहसरहकेहथियार-बाजा-नोवतखाना औरखानपानकी चीजेशाथदिइ.----
सुदर्शना वडीतयारीसे भरुअछआइ, शाथमें उसके बडीफौज सुनकर भरुअछके राजाने समझाकोइ गनीमआताहै, अपनीफौज तयाररखो, ऐसा-नहोकि-राज्य-छीनलेवे, दुनियामें सबको अपना फिक्रपडाहै, उसकाआना यात्राकेलियेथा, मगरराजासमझगया गनीमआताहै, सुदर्शनाकेजहाज समुंदरकनारे उतरे, और उसकादिवान नजरानालेकर जबराजाकेपास जानेलगा लोगोनेसमझलिया कोई गनीमनही, किसीराजेका दिवानहै, जवाह-मरुअछमें आया और नजराना सामनेरखा-तो-राजानिहायत खुशहोकर कहनेलगा कहांसे और किससबबकेलिये आनाहुवा, दिवाननेकहा ! मैं !!-सिंहलद्वीपकराजाका नौकरहुं-और उनकी लडकीकेशाथआपके शहरकी सफरकोंआयाई, सुदर्शनायहां एक जैनमंदिरतामीरकरवाना चाहती है, अगरआपका हुकमहोसवकाम ठीकहोगा, आपकेशहरका एक
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