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________________ तवारिख - अश्वावबोध - और - शकुनिकाविहार ( ४३ ) कर अपनेवतनकोंलोटी. शकुनिकाविहारतीर्थ उसरौजसें जारी हुवा, सुदर्शनावालिदने एकराजकुमारकेशाथ उसकी सादीकि, तावेउमरउसने सुखचेनपाया, धर्मकीतरक्कीकि, और उमरपुरी होनेपर मरकरस्वर्गकोगइ. – , • आजकल कइलोग पूरवजन्मकों नहीमानते और इसवातपर हंसी उड़ाते है कि - पूरवजन्म किसनेदेखा ? मगरखयालकरो ! पूरव जन्म-न-होतातो-जन्मतेही एकमुखी-और- एकदुखी क्यों ? एक शख्श अपनाकामखराबकरता है मगर अपनेकों उसपर मोहब्बत पैदा होती है, औरएकशख्स अपनेको चाहता है, मगर उस पर अपनेकों मोहब्बतनही होती. बतलाओ ! इसकी क्या वजह है ? इसकीवजह यहहै कि-वह-तुमारेपूरवभवका दुश्मन है. (सूत्र - आवश्यके अवलअध्ययनका फरमाना है कि - ) igradaiपः स्नेहवपरिहीयते, सविज्ञेयो मनुष्येण - एषमेपूर्ववैरिका, १, दृष्ट्वा वर्धतेस्नेहः - कोपश्चपरिहीयते, सविज्ञेयोमनृष्येण - एषमेपूर्वबांधवः, सबुतहुवा पूर्वजन्मजरुर है, जिसकोदेखकर अपनेको क्रोध पैदा होता है जानना चाहिये यह अपनापूरवभवका कोइ दुश्मन है, और जिसकोंदेखकर मोहब्बतपैदा होती है - जानना चाहिये यह अपने पूरवभघका air खैरख्वाह है, अश्वाववोध - और - शकुनिका विहारतीर्थ मुनिम् स्वामी शासनकालसें जारी हुवेथे. जिसको आज करीब ( ११८७४३३) वर्षगुजरे, जिसकोशकहो कल्पसूत्रखोलकर देखे, तीर्थकर मुनिसुव्रत स्वामी के पीछे तीर्थकरनमीनाथहुवे, नमिनाथजी के बाव-तीर्थकरनेमिनाथ और नेमिनाथ के बाद तीर्थंकर पार्श्वनाथहुने, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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