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तवारिख-तीर्थ-तारंगा. (१०१ ) मली-नीम-बबुल बगेराहरूतखडेहै. कभीकभीइसजगह औरभीआजाताहै. जवपहाडकीचोटीपरपहुचोगे एकधर्मशालाऔरदुकानेवनीयोंकीमिलेगी,-हरेककिसमका सामान-वास्तगिजांक-जोकुछदरका रहो दस्तयाबहोसकेगा.
तारंगातीर्थकी तरक्कीबदौलत हेमचंद्राचार्यकहुइ, क्योंकि-ये--राजा--कुमारपालकेगुरुथे और कुमारपाल अठारादेशोका राजाथा, जबकुमारपालकों राज्यनहीमिलाथा हेमचंद्राचार्यजीनेउस केलक्षणदेखकर कहदियाथाकि-तुं ! आलादर्जेकाराजाहोगा, जबकुमारपाल-राजाहुवा हेमचंद्राचार्यकी कदमबोसीकोंआया, औरअपनेनगरमें बडीशान-सौकतसेलेगया, राजाकुमारपालकीसलतनवका खासमुकाम-शहरपाटन-जोकि-मुल्कगुजरातमें एकमशहुर-व-मारुफशहरहै जोकुछहुकमवगेरा सजिलो जारीहोताथा उसीपाटनसे निकलताथा. हेमचंद्राचार्य-बडेआलिमफाजिल-संस्कृतविद्याके आलादर्जेकेपंडितथे, जिनोनेअपनी अकल-और-इल्मसेअछेअछे धर्मशास्त्र-और-व्याकरण-काव्य-कोश-न्याय-अलंकारवगेरा बनाये है, जिनकोपढकर आलादर्जेकेपंडितलोगभी ताज्जुबकरते है राजा कुमारपाल हेमचंद्राचार्यके हुकमकोंसौरपररखताथा औरकभीडकम अदुलीनहींकरताथा, दुसरेमजहबवाले जोकि-बडेमंत्रवादीकहलातेथे राजाकुमारपालके दरबार आनकर अपनामंत्रबलबहुतसा बतलातेये मगरक्या ! मजालथीकि-कोइ उनकामुकाबिलाकरसके ! क्योंकिआचार्यहेमचंद्रजीको शासनदेवीसिद्धथी, हेमचंद्राचार्य-हमेशांआमलोगोको व्याख्यानधर्मशास्त्रकासुनातेथे, औरधर्मसभा जुडतीथी. राजाकुमारपाल हमेशांधर्मशास्त्र आमलोगोंकीबराबरीमें जमीनपरबे. ठकरमुनताथा, औरउतनीबंदगी गुरुकीकरताथाकि-किसीतरहउनके हुकमकों नहीटालताथा, राजाकुमारपालकी देवभक्तिभीऐसीथीकि
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