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( १०२ ) तवारिख-तीर्थ-शत्रुजय. पाटनकजिनमंदिरमें हमेशांखडाहोकर वीतरागस्तवपढताथा, जबजब शहरमेंजिनमूर्तिकी रथयात्रावगेराका जलसा होताथा-राजाकुमारपाल-अपनेगुरु हेमचंद्राचार्यजीकेशाथ नंगेपांवचलताथा, औरशामके वख्त जिनमूर्तिकीआरती मंदिरमेंखुदजाकरउतारताथा, आजकल कितनेकश्रावक धर्मकोंयहांतक भूलगयेहैकि-जिनमंदिरमेंजानेकीभी उनकोंफुरसतनही. हेमचंद्राचार्यजैसे जैनश्वेतांवराचार्य गुरुऔर कमारपालजैसा जैनश्वेतांवरश्रावक-होनादुसवारहै, हेमचंद्राचार्यजीने राजाकुमारपालकों इसवातकीखातिरजमा करवादिइथीकि-दुनियामें-दौलत-हकुमत-माल असबाबऔर जींदगीकोइ उमदाचीजनही, उमदाचीज एक धर्मही है,
तारंगातीर्थकामंदिर इसी-राजाकुमारपालका तामीरकियाहुवाहै, इसकीपायदारी औरबनावट ऐसी उमदाहैकि--इसके बनानेमें जितने रुपयेसर्फहुवे बयाननही करसकते, रंगमंडपऔर खंभेइसकदर बडेहैकि-देखकरआदमीताज्जुब करनेलगताहै, चारोंतर्फउसकी परकम्मा औरबडासहनदेखकर तबीयतनहीचाहती यहांतेबहारचले जाय, बाहरकीदिवारमेंचारोतर्फगजथर औरअश्वथरलगा हुवा-हाथीघोडोंकीशकले--पथरमेंबनीहुइहै, अकसरशिल्पशास्त्रका कायदाहै कि-राजाओंके तामीरकरवाये हवे मंदिर में जरुरगजथर-अश्वथरलगायेजाय. राजाकुमारपा लका इरादाथाकि-इसमंदिरकों खुबउंचाबनाना, मगरहेमचंद्राचार्यजीने फरमायाज्यादह उंचामतबनाओ बहूत उंचेमंदिरकी उमरअकसरकमहोतीहै, राजाकुमारपालकों उनकेफरमानेपर कुछउजरनहीथा इसलियेउसनेउतनाही
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