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________________ तवारिख - तीर्थ - राजगृही. ( २३९ ) धर्मशाला में कयामकरे. इक्का - बगी वगेराकेलिये पासमें दुसरी धर्मशाला करीब ( ५ ) विधेके घेरेमें मौजूद है, चारोंतर्फ कोट घिरा हुवा - करीब - ( २०० ) गाडीबेंल - इसमें व - खूबी रहसकते है. जैन श्वेतांबर मंदिर यहां तीन है मगरएकही हातेमें बने हुवे होनेकी वजहसे दूर से एकही मालूम होते है, एक पुराना - और - दो - नये है, एकमंदिरमें तीर्थकर पार्श्वनाथजी की मूर्ति-दुसरेमें तीर्थकर रिषभदेव महाराजकी- और तीसरेमे - तीर्थकर मुनिसुव्रत स्वामीकी मूर्त्ति - तख्तनशीन है. तीर्थ राजगृहीका कारखाना - मुनीम - गुमास्ते - नोकरचाकर-पूजारी वगेरा सबश्वेतांबरोंकी तर्फसे है, खानपान - कीची आटा-दाल - घी - सकर - वगेरा यहां मिल सकती है. राजगृहीके पंचपहाड जिनपर जैन श्वेतांबर मंदिरवनेहुवे, काबिलदेखनेके है, राजगृहीसें थोडीदूरपर चलनेसे विपुलगिरि पहा - डकी दामनकों जाते रास्तेमें गर्मपानी के भरेहुवे पांचकुंड मिलते है, वहांसे आगे पहाडकारास्ता शुरुहोगा, रास्ता बांकाटेडा-और-चढा मुश्किल है. पहाडके सीरेपर अमंता मुनिकी छत्री बनी हुइ और उसमें अहमतामुनिकी शामरंग मूर्त्ति खडेआकार तख्तनशीन है, और उसपर लिखा है संवत् ( १८४८ ) कातिकसुदी - पुनमके रोज जैन श्वेतांबर संघने यहां अतिमुक्तकमुनिकी मूर्ति तख्तनशीन far, और अमृतवाचक महाराजने इसकी प्रतिष्ठा कि, दूसरा मंदिर तीर्थंकर महावीरस्वामीका इसमें उनके कदम कमलदलपर तख्तनशीन है. तीसरा मंदिर तीर्थकर चंदाप्रभुका इसमें चंदाप्रभुके कदम तख्तनशीन है. चोथामंदिर तीर्थंकर महावीरस्वामीका - इसमें तीर्थंकर महावीरस्वामी के कदम-और-एकमूर्त्ति खडीमुरतमें तख्तनशीन है, इसमंदिरकी दूसरी मंजिलपर समवसरणकी शिकलबनी हुइ-तीन किले - और - वारांपरखदाका आकार उमदा बना हुवा -दे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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