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। २४० ) तवारिख-तीर्थ-राजगृही. खकर असलीसमवसरण यादआताहै, पांचवामंदिर तीर्थकर मुनि सुव्रतस्वामीका-इसमें मुनिसुव्रतस्वामीके कदम तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१९२८ ) में इसकी मरम्मत किइगइ, छठामंदिर तीर्थकर रिषभदेवस्वामीका-इसमें उनके कदम तख्तनशीनहै और उसपर लिखाहै संवत् ( १८१६) ओशवंशगोत्रे-बुलाखीदास-तत्पुत्रमाणिक्यचंद्रेण-राजगृहे--वैभारगिरौ-जीर्णोद्वारःकारापितः-असलमें यहकदम-वैभागिरिपरथे वहांसे यहां लायेगये है. दुसरेकदम-तीर्थकर रिषभदेव महाराजके यहांपर मौजूदहै, और उसपर संवत् ( १८७४ ) में-श्रीजिनहर्षमरिने इसकी प्रतिष्टाकिइ लिखाहै, यह कदमभी पेस्तर वैभारगिरिपरथे, वहांसे यहां लायेगये है, तीसरे कदम तीर्थकर महावीरस्वामीकेभी यहां. पर जायेनशीनहै. और उसपर लिखाहै संवत् ( १९००) में इसकी प्रतिष्टा किइगइ-और-ओशवाल वंशोद्भव-बाबु खुशालचंद्र पत्नी-प्राणकुमारीबीबीने इनकों बनवाये, विपुलगिरिसे उतरकर रत्नागिरि पहाडपर जाना. विपुलगिरिका चढाव एककोशका
और-उतारभी एककोशका है.___रत्नागिरि पहाडपर दो-मंदिर बनेहुवे है एकवडा और एक छोटा-बडामंदिर तीर्थकर शांतिनाथजीका-इसमें शांतिनाथमहाराजके कदम तख्तनशीनहै. और उसपर लिखाहै संवत् (१८१९) में ओशवालगंधीगोत्र-बुलाखीदासके बेटे-मणीक्यचंद्रगंधीने इसकों तामीरकरवाये, तीनकदम औरभी है उनपरभी यहीलेख लिखाहुवा है, दूसरामंदिर तीर्थकर चिंतामणीपार्श्वनाथजीका-इसमें उनके कदम-तख्तनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१९००) मेंसचिंतीगोत्र-बाबु-महतावचंदजीकी औरत-चिरोंजीबीबीने इसकी मरम्मतकरवाइ, ये-कदमभी पेस्तर वैभारागिरपिरथे, बादमें यहां
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