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तवारिख-तीर्थ-राजगृही. ( २४१ ) लायेगये है, रत्नागिरिसे उतरकर उदयगिरिकों आना, पहाडसें उतरकर एक मीलतक साफरास्ता मिलेगा, इसजगह बहुतबडा मेंदान-और-तरहतरहकी जडीबुटीये-खडी है, अनंतमूल-गोरखंडी-शतावर-सहदेवी-आसगंध-बगेरावगेरा, फुलोंमें चमेलीबेला-गुलदाउदी-जुही-निवार वगेरा यहांपर पैदाहोते है. रास्तेमें मीठेजलका कुवा मौजूदहै जिसकेजरीये यात्रीयोंकों आराम मिलताहै,
उदयगिरिका चढाव-कठिनहै, और इसपर दो-मंदिर-मौजूदहै. एक-शामलियापार्श्वनाथजीका-दुसरा शांतिनाथजीका-शामलियापार्श्वनाथजीके मंदिरमें-तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी निहायत खूबसुरतमूर्ति-करीव (२) हाथवडी तख्तनशीनहै, इसपर लेख नहीहै, और जो तीर्थकर पार्श्वनाथजीके कदम जायेनशीनहै उसपर लिखाहै संवत् ( १८२३) में-ओशवालगंधीगोत्र-घुलाखीदासजीके बेटे माणिक्यचंद्रजीने इसकों तामीरकरवाये,-मंदिरकी परकम्माके सामने एकछत्री बनीहुइहै, उसमें तीर्थकरपार्श्वनाथजीकी शामरंगमूर्ति-और-तीर्थकर अभिनंदनजीके कदम तख्तनशीन है. उसपरलिखाहै संवत् (१८२३) में ओशवालगंधीगोत्र-बुलाखीदासजीके बेटे माणिक्यचंद्रजीने इनकों बनवाये, दाहनीतर्फकी दिवारमें एकछत्री वनीहुइहै और उसमें तीर्थकर पदमप्रभुकी शामरंगमूर्ति जायेनशीन है. पिछाडीतर्फ दिवारमें एकमूर्ति और उसकेपास तीर्थकर सुमतीनाथजीके कदम जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१८२३ ) में ओशवालगंधीगोत्र-माणिक्यचंद्रजीने इसकों तामीर करवाये. वायीतर्फकी दिवारमें एकछत्री और उसमें एकमूर्ति शामरंगकी तख्तनशीनहै, पूर्वतर्फ तीनमंदिरगिरेहुवेपडेहै, उदयगिरिपर पेस्तर औरभी कइमंदिरथे मगर सबनेस्तनाबुद होगये, उदयगिरिसे उतरकर स्वर्णगिरिकी तर्फजाना. रास्ताकोसभरका
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