________________
( २४३ )
तवारिख - तीर्थ - राजगृही.
उतार- बीचमें कुछ सिधीसडकभी आती है. यहां पर पानीका एकनाला हमेशां वहता रहता है, यात्रीकों पानीकी तकलीफ नहीहोती.
स्वर्णगिरिverses arrव और उतार दोनोंबराबर है और इसपर ( २ ) मंदिर बने हुवे है, बडामंदिर तीर्थकर रिषभदेव स्वामीका - इसमें तीर्थकर रिषभदेवमहाराजकी शामरंगमूर्ति और उनकेकदम तख्तनशीन है, मूर्त्ति करीब ( ३ ) फुटबडी और इसपर लिखा हुवा है संवत् ( १५०४ ) फाल्गुनसुदी ( ९ ) वीजाहडगोत्र-संदेवराजपुत्र - सं- खीमराज -सं- शिवराज भार्यामाणिक्यदे पुत्र--संरणमलधर्मदासने - यह मूर्त्ति तामीरकरवाई. दुसरामंदिर छोटा है, और इसमें तीर्थकर शांतिनाथजी की मूर्ति करीब पौनफुट वर्डी त ख्तनशीन है, वडेमंदिरकी पश्चिमतर्फ एकमंदिर गिराहुवा पडा है, पेस्तर और भी मंदिर - मगर - अवनहीरहे, स्वर्णगिरिसें उतरकर वैभारगिरिपहाडकोंजाना, रास्ते में तरहतरहकेद्ररूत और जडीबुटीयें इतनखडी है जिनका पहिचानना दुसवार है, वैभारगिरिकीतराइमै - स्वर्ण भंडार - जो - राजाश्रेणिकका मशहूरखजानाथा पहाडकी खोहमें बना हुवा है, बडी भारीगुफा - और - उसके भीतर जानेकारास्ता पेस्तर बना हुवाथा आजकलचंद है. गुफा के दरवाजे के करीव तीर्थकर रिषभदेवमहाराजकी मूर्ति खडीसुरतमें कायोत्सर्गध्यानमयमौजूद है, और कुमारनमि-विनमि- उनकी खिदमत में खडे है, दर्शन करके दिलखुशहोगा, स्वर्ण भंडार से पूरवकीतर्फ निर्माल्य कुइ जहांकि - शालिभद्रजीकी औरतें हरहमेश नयेनये गेहने और पुशाकपहेनकर पुराने छोडदेती थी, वोजगह मौजूद है, यात्री वहांभी जाकरदेखे, क्या क्या ! खुशनसीब और इकबालमंदो की जगहथी और अवक्या! रहगइ ? सीर्फ ! जमीन पडी है. न- वो खनक है-न वो चीजे है. निर्माल्य कुइसे वापिस स्वभंडारी तर्फ आकर वैभारगिरिपहाडकों जाना.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
-
www.umaragyanbhandar.com