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तवारिख-पंचतीर्थी. (१४१ ) किसकिसतरहके गुलदस्ते-पुतलीये-वेल-बुटे-बगेरावनाये हैकिजिनकोंदेखकर आदमी ताज्जुबकरने लगताहै, जबदुसरे रंगमंडपमें पहुचोगे-पेस्तरकी बनीस्पत ज्यादहकारीगीरी नजरआयगी, दाहनीतर्फका रंगमंडपदेखोतो उसकी कतावजा-उससेंभी निराली है, पीछलीतर्फका रंगमंडप देखोतो औरही कताका बनाहै, छतपर बारीककाम-और पुतलीये किसकदर तमाशा कररही है जोकाबिल देखनेके है, बायीतर्फका रंगमंडप-सबसे-ज्यादहखूबसुरतबनाहै, चाररंगमंडपबडे औरचार ऊनकेसामनेछोटे-कुल आठहुवे, और सोलहरंगमंडप चारोतर्फके कोनेमें कुल्ल (२४) हुवे,
इसमंदिरमें मूलनायक चौमुखजीकी चारमूर्तिये-निहायतखूबसुरत और अतिशययुक्त तख्तनशीनहै, पश्चिमतर्फजो मूर्ति-तख्तनशीनहै उसपरसंवत् (१४९८) लिखाहै, ऊत्तरतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१६७९) पूर्वतर्फकीमूर्तिपर संवत् (१४९८) और दखन तर्फकी मूर्तिपरभी वहीसंवत् (१४९८) का-लेखहै. पश्चिमतर्फके मूलनायके सामने दरवजेकी दाहनीतर्फ जोदिवारमेंलगाहुवा बडा शिलालेखहै उसमें संवत् (१४९६) श्रीमेदपाट-राजाधिराजश्रीबप्प-और-श्रीगुहिलवगेराराजाओकी (४०) पीढीयोंके नाम-और फिर आगे (३९) मी-पंक्तिमे लिखाहै परमआईत धरणाशाह पोरवाडने यहमंदिर तामीरकरवाया, (४१) मी पंक्तिमेंलिखाहै राणकपुरनगरे राणाश्रीकुंभकर्ण नरेंद्रेण सुनाना-निवेशितः-फिर आगे (४२) मी-पंक्तिमें लिखाहै त्रैलोक्यदीपकाभिधान-श्रीचतुमुखयुगादीश्वरविहारः-कारितः-इसकेआगे लिखाहै श्रीहत् तपागछे-श्रीजगत्चंद्रसरि-श्रीदेवेंद्रसरि....आगेकुछखंडितहोगयाहै पढा नहीजाता, मगरअखीरकी पंक्तियोंमें तपगछके आचार्यमाहाराजने प्रतिष्टाकिइ लिखाहै, जबराज्यका उल्थाहुवाथा-किसीने प्रतिष्टाचार्यकानाम तोडदियाहै,
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