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( १४० ) तवारिख-तीर्थ-शंखेश्वर. देवविमानकी यहांआगइहै, और इसीलिये इसकानाम त्रैलोक्य दीपक मंदिर कहागया, बावनजिनालयका उमदामंदिर और आलादर्जेकी कारीगरीका नमुना देखनाहो-नजरके सामने देखलो. चारोतर्फसे बराबर तीनतीनमंजील ऊंचा-और-चारोंतर्फके चार दरवजे इसतरह बनेहुवेहै, मानो ! समवसरणका आकार बनाहो, पेस्तरयहां रानकपुर नामका शहर आवादथा. संवत् (१५००) की सालमें कहतेहै यहांपर जैनश्वेतांबरश्रावकोंके घरअंदाज(३०००) थे, जब-रानकपुरकी आवादीकमहुइ-कितनेकश्रावक-सादरीमेआन बसे, कइपाली-मेवाड-और-मालवेतर्फ चलेगये, दुनियाकेकारोबार इसीतरहसे चलेजाते है, कभी नावगाडीपर-कभी गाडी नावपरयह सब तकदीरीमामलाहै, और पूर्वसंचितकर्मके ताल्लुकहै, श्रावक लोगही क्या ! दिगरकोमकेलोगभी रानकपुरसे खानाहोकर दुसरीजगह जावसे, गरजकि-इसवख्त रानकपुरमें एकभी घर जैनश्वेतांबरश्रावकका नहीरहा. सीर्फ ! रानकपुरकीजगह-मंदिर-धर्मशाला-बाग-और-पुरानेकोट के निशानात बाकीरहगये. राणाजीके बनायेहुवे मंदिरके पासजाकरदेखोतो पुरानेकोटकी दिवार बडी दूरतक लंबीचलीगइहै, और उसीके पाससे भानपुरहोकर मेवाड जानेका रास्ताशुरुहै,
मंदिरकेपासबडी आलिशानधर्मशाला बनीहुइहै यात्री इसमें जाकर कयामकरे, और तीर्थकी जियारत हासिलकरे, तारीफकरो! ऐसे बहादूर और सखी धरणाशाहशेठकी जिसने ननाणवे लाखरुपये सर्फकरके यह त्रैलोक्यदीपकमंदिर तामीरकरवाया, जब पश्चिमकी-सीढी तयकरके मंदिरके रंगमंडपमें पहुचोगे, मानींद एक ... स्वर्गलोकके नजर आयगा, छतोमें-खंभोंमें-और-मेहराबोंमें जोजो
कारीगिरीकिइगइहै ऊसकी तारीफकरना जबानसेवहारहै, छतमें
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