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(१४२) तवारिख-पंचतीर्थी.
मंदिरकी दुसरीमंजीलपरजानेसे औरही खूबी नजरआती है, हुबहु स्वर्गविमानका नकशादेखलो.-मूलनायक यहांभी चौमुखजी महाराजकी चारमूर्तिये जायेनशीन है, जिनमें पश्चिमतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१५०७) लिखाहै. उत्तरतर्फकी मूर्तिपर (१५०८)-पूरव तर्फकी मूर्तिपर (१५५१) और दखनतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१५०६) लिखाहै. तीसरीमंजीलपर जाकरदेखो औरही उमदारवनक दिखाइदेती है, मंदिरका बुलंदशिखर-और चौरासीजिनालयोके छोटेछोटे-(८४) शिखरदेखकर स्वर्गविमान मालमहोताहै, असलमें यह त्रैलोक्यदीपकमंदिर-नलिनीगुल्म-विमानका-नकशाहै, तीसरीमंजीलपरभी मूलनायक चौमुखजीहीकी मूर्तिये जायेनशीन है. और उनमें पश्चिमतर्फकी मूर्तिपर संवत् (१५११) का-लेख है, तारीफकरो धरणाशाहपोरवाडकी-जिनोने-ऐसा त्रैलोक्यदीपक-युगादीश्वरदेवका मंदिर बनवाया, जिसकीसानी दुसरा कोई नजर नहीआता, ___ परकम्मामें (८४) जिनालय-और-मूलनायककी दाहनी तर्फ-तीर्थ-समेतशिखरका आकार-बनाहुवाहै, उसपर संवत् (१५४८)--लिखाहै, एकजगह संवत् ( १५५६ )--एकजगह (१५५० ) और एकजगह संवत् (१५४७) लिखाहै, मेरूपर्वतके आकारपर संवत् (१५५० ) का लेखहै, इसके आगे एकजिनालयमें तीर्थकर महावीरस्वामीकी साढे तीनहाथडी मूर्ति तख्तनशीनहै, उसपर लिखाहै संवत् ( १६५१) वर्षे-माघसुदी (१०) मीके रोज यह बनाइगइ. छोटे जिनालयोमें सबजगह बहुतकरके राजा संपतिकी बनाइ मूर्तियेही जायेनशीनहै. बायीतर्फ परकम्माकएक जिनालयमें-तीर्थकर रिषभदेवभगवान्की साडेतीनहाथ बडी-मूर्ति जायेनशीनहै, और उसपर लिखाहै संवत् (१६७९)-वैशाखमुदी
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