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तवारिख-पंचतीर्थी. (१४३ ) (११) बुधवासरे-राजाश्री कर्णवीजयजित्समये भट्टारक श्रीवीजयदेवसूर्युपदेशेन-श्रीआदिनाथ बिं प्रतिष्टितं-पं-श्री वेलागणि-पंश्रीजयविजयगणि-पं-श्रीतेजहंसगताभिः-ओशवालज्ञाति-कोठारी केशवभार्या-कपूरदे-तत्पुत्रकोठारी....इसकेआगेके हर्फ घीसगयेहै खुलतेनही. मगर मतलव सवका यहीनिकलताहैकि-संवत सोलहसो उन्नासीमे-राजाकर्ण विजयजीक वख्तमें-विजयदेवमूरिके उपदेशसे. कोठारीकेशवजीकी भार्या कपुरदेके बेटेने यह मूर्तिबनवाइ, धरणा शाहपोरवाडके वाद-यह मूर्ति बनाइ गइहै ऐसाजानना, एक जिनालयमें तीर्थअष्टापदका-और-तीर्थनंदीश्वरद्वीपका आकार बनाहुवाहै, मगरलेख इसपर कोइनही,
मूलनायक तीर्थकर रिषभदेवभगवानके सामने एकहाथीपर मरूदेवाजीकी मूर्ति जायेनशानहै उसपर संवत् (१७२८) कालेखहै, और छोटेछोटे जिनालयोंका जिक्र खतमहुवा, मूलनायक भगवानकी दाहनीतर्फ-रंगमंडपोकी बाजु एक रायणकाद्रख्त-और -उसकेनीचे तीर्थकर रिपभदेवजीके कदम जायेनशीनहै, इसत्रैलोक्यदीपक मंदिरमें-( ८४ ) तलघर बनेहुवे और उनका रास्तापश्चिमतर्फके दरवजेमे घुसते जो दोनों तर्फकी दिवारमें-सिलालगीहुइ बंदहै उधरसेहै, शेठ धरणाशाह पोरवाडकी तारीफकरोकि-जिसने-जैसेऔसेकाम-अपनी दिलोजान-व-मालसें किये, श्रावकहो-तो-जैसेहो, ___इस मंदिरमें ( ४२ ) पाट पथरके टुटगयेहै जो काबिल नये बनवानेकै, अगर आजकलमें बनजायतो बहतरहै बरना ! ज्यादह सर्फा पडेगा, मूलनायक महाराजकी दाहनी तर्फकी परकम्मामें इशानकोंन तर्फकी दिवार झुकगइहै, अगरइसकी मरम्मत-न-होगी तो यहदिवार गिरजायगी, जोकाम अब एकहजार रूपयोंमें निक
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