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( २८४ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. आगे आधकोशबढनेसें-एक-गंधर्वनालाआयगा, रास्तेमें दोनोंतर्फ झाडीझुखड-व-कसरतद्रख्तोंकी चकाचक-और-ठंडीठंडीछांव चेतवैशाखकेदिनोभी हरियाली-मानींदेसब्जफर्स विछाहुवाहै सडक वहुतआरामकीवनीहुइ कोइतकलीफ यात्रीकों-न-होगी. गंधर्वनालेपर धर्मशालाएक-जैनश्वेतांवरसंघकीतर्फसे बनी इहै-और करीवमें एक चिश्में आव-मीठेजलका ज्ञरनाजारी है, देखकर दिलखुश होगा, ____ गंधर्वनालेसे आगे एकमीलपरवढेतो एक शीतानालानामका नालामीलेगा. जलकेझरने-तरहतरहके द्रख्त-और-झाडीझुखडसे तमामपहाड छायाहुवा, किसीजगहविनापेंड और सब्जीके कोइहिस्सा-न-देखोगे, शीतानालेसें आगे एककोश चढनेपर तीर्थकर कुंथुनाथमहाराजकी टोंक मिलेगी, अवल इसकेदर्शनकरनाचाहिये, इसमें कुंथुनाथस्वामीकेचरण तख्तनशीनहै--और उसपरलिखाहैकि संवत् ( १८२५ ) माघशुक्ल (३) गुरौ-बिरानीगोत्रीय शाहखुशालचंद्रेण-श्रीकुंथुनाथचरणपादुकारापिता--प्रतिष्टिता-ध-तपागछे-श्रीरस्तु छत्रीकी मरम्मत संवत् (१९३१) में हुइ, हरेकतीर्थमें यहएककदीमीरवाज होताचला आयाकि-एकमंदिरपुरानाहोकर गिरगया दुसरेखुशनसीवने फिर उसकों तामीर करवाया. इसीतरह तीर्थकी जड बनी रहती है,___ दुसरीटोंक नेमिनाथजीकी, इसमें तीर्थकरनेमिनाथजीके चरनतख्तनशीनहै, और उसपरलिखाहैकि-संवत् ( १८१६) माघ सुदी तीज गुरुवारकेरौज विरानीगोत्रके शाह-खुशालचंदजीने इसकों तामीर करवाये. खुशालचंदजी जैनश्वेतांबरश्रावकथे, टौंकपर जो छत्री बनीहुइहै सं. वत् (१९३१ ) में उसकी मरम्मतहुइहै,
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