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________________ गुलदस्ते-जराफत. (४०९ ) - यह सुनकर पंडितजी समझ गये, यह भिस्तीकी लडकी है, फिर कुछ आगे बढे तो एक दरजीकी लडकी मिली, उसको पुग तुं ! किसकी लडकी है, ? उसने जवाब दिया, ग्रीवाशीर्षे न विद्यते-हस्तपाद विवर्जितः स जीवं पुरुषं अत्ति-तस्य कुलेहं बालिका, यह सुनकर पंडितजी समझ गये कि-लडकी-दरजीकी है, फिर कुछ आगे बढे तो एक और लडकी मिली, उसको पुछा तोजनावमें उसने कहा, यंत्र तंत्र विधि नित्यं-करोति खंडखंडतां, राजा प्रजा न जानाति-तस्य कुलेहं बालिका, ३ - पंडितजी इस बातको सुनकर समझ गये यह मूथारकी लड़की है, फिर कुछ आगे बढे तो एक लोहारकी लडकी मिली उससेभी पुछा तो जवाब दिया कि स्वासोत्स्वासं च गृन्हाति-जीवंतं इव सर्वदा, कुटुंबे कलहो यत्र-तस्य कुलेहं बालिका, ४ फिर कुछ आगे बढे तो एक और लडकी मिली, उससभी यही सवाल किया, और उसने जवाब दिया कि,. पर्वताग्रे रथो याति-भूमौ तिष्ठति सारथी, चलते वायु वेगेन-तस्य कुलेहं बालिका, यह सुनकर पंडितजी जान गये यह कुंभारकी लडकी है, फिर आगे बढे तो एक और लडकी सामने मिली, उससेभी पुछा कितुं ! किसकी लड़की है ? उसने कहा, .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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