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तालीम-धर्मशास्त्र. (२१) अगर कोइ तीर्थका-मेनेजर-या-मुखीया-उसतीर्थ-या-मंदिरका हिसाब-न-बतलावे-तो-राज्यकेजरीये उपावलेनाजरुरीहै, इतनेपरभी-वह-गुस्ताखीकरे तो उसको संघसें खारिजकरनाचाहिये. और-उसतीर्थ-या-मंदिरकी कुंचीयां ऊससे छीनलेनाचाहिये. कइयात्री असेभी-है-जो-आरतीका-या--पूजनका-धीबोलकर रुपयेपैसेदेतेनही, और चूपमारकर चलेजाते है, कइकहते है हम-उस-अमानतकी कोइचीजबनाकर मंदिरमंधरेगें, या-धर्मशालाबनवादेयगें, मगर शास्त्रफरमाताहै उसद्रव्यसे चीजबनवानेका-या-धर्मशाला तयारकरवानेका तुमकों क्याहकहै, ? यहतो जवसेतुम-आरती-या-पूजनवगेराकेलिये बोले तबसेही देवद्रव्य होचुका, कारखानेके सुपुर्दकरो, संघ-उसका-रक्षकहै, तुम-चीजया-धर्मशालाबनवानेवाले कोन, ? संघकी जोरायहोगी-वह-कामहोगा, कइकहतेहै हमने हमारीदुकानके बहीखातेमें देवकेनामसें जमाकरलिये है आठआनासेंकडे व्याजदेयगें, मगर उसकोजमाकरलेनेकाभी तुमकों कोइइख्तियार नही. संघ उसकों जैसामुनासिबसमझेगा वैसाकरेगा, श्रावकोकेघर देवद्रव्यरखनेका हुकमनही. हरजगह आनंदजी-कल्यानजीकेनामसे दुकानशुरुकरके मुनीमगुमास्तेरखना और कामचलाना, याते कोइएकश्रावक अपनीहकुमत उसपर चलासकेनही. देवद्रव्य घरमें रखनेसेकोइफायदा नही, जिनजिनाने देवद्रव्यघरमें रखा देखलो ! उनकों अखीरमें नुकशान हुवा, इसलिये सीधेहोकर उसदेवद्रव्यकों देदेना इसीमें तुमारीतारीफहै, मुनिमहाराजोकी फर्ज है देवद्रव्यकी हिफाजतकरवानेमे मुस्ती-न-करे, अगरकोइ इसदलीलकों पेंशकरेकि-मुनीमहाराजतो त्यागी है-उनकों देवद्रव्यकेकाममें बोलनेका क्या अधिकार है, ? जवाबमें मालूमहो, मुनिमहाराज पापकेकामके त्यागीहै, धर्मकामक-: रनेके त्यागीनही है, औरउनकों देवद्रव्यकेलिये बोलनेका अधिकार:
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