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________________ ( ३१२) तवारिख-तीर्थ-अंतरिक्षजी. गालिचे-शतरंज-और-पघडी यहां अछी बनाइ जाती है, टेलीग्राफ औफिस-स्कुल-अस्पताल और पोस्टऑफिसभी यहां मौजूद है, जैनश्वेतांबर श्रावकोके घर अंदाजन (७५)-और-(२) जैनश्वेतांवर मंदिर जिसमे एक मंदिर-जो-तपगछवालोंकी तर्फसें नयातामीर किया गया है काबिल देखनेके है, मुतस्सिल उसके तपगछघालोंकी धर्मशालाभी बनी हुइ है, जहांकि-आये गये यात्री और मुनिलोग ठहरा करते है, वालापुरसे तीर्थ अंतरिक्षजी करीव (१८) कोसके फासलेपरवाके है, जैसे आकोलेसे पकी सडक गइ है वालापुरसेभी उसीतरह गइ है, जोकि-नजदीक कस्बे पातुरके जाकर मिल जाती है, यात्रीको मरजी हो बालापुरके रास्ते तीर्य अंतरिक्षजी नाय-या आकोलेसे-इख्तियारपर मौकुफ है, जितना खर्च-आकोलेसे पडेगा बालापुरसेभी उतनाही पडेगा. ( तवारिख-तीर्थ-अंतरिक्षजी,) मुल्कवराडमें आकोला टेशनसे (२२) कोसके फासलेपर कस्बे श्रीपुरमें-अंतरिक्षजी-एक पुराना जैन तीर्थ है, आकोलेसे-इक्काबेलगाडी वगेरा सवारी मिलसकती है, तवारिख इसतीर्थकी इसतरह बयान किइजाती हैकि-एकवख्त लंकाके रहनेवाले-दो-विद्याध र-माली-सुमालीनामके लंकासे उत्तराखंड जानेकेलिये रवानाहुवे, विद्याधरलोग बजरीये विमानोंके सफरकियाकरतेथे, यह बात पेस्त रके धर्मशास्त्रोंमें लिखीहुइहै, जब उनके खाना खानेका वख्त करीब आपहुचा सौचाकि-जमीपर उतरकर- स्नानकरे और खानाखावे. गरजकि-वे-जमीनपर उतरे जहांकि-एक-तालाब मौजुदथा, माली मुमाली-हाथमुंह धोकर साफहुवे और अपनी देवपूजाकेलिये तनवीजकिइ-तो-मालूमहुवा अपने देवकी मूर्तिका करंडिया घर भुल आये है, और यहांकोइ जिनमदिरभी मौजुदनहीं जिसके दर्शनकरे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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