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सवाने-उमरी. ( ७९ ) तीजकेरौज खानाहोकर-देहलीके रास्ते-अंबाला-लुधिहानाजालंधर-अमृतसर-लाहोर-हातेहुवे-गुजरानवाल-टेशनगये टेशनसे करीब आधमीलके फासलेपर-जो-महाराजके गुरुजीकी चरनपादुका-और-छत्री वनीहुइहै-वहांपर जाकर चरनपादुकाके सामने मरिमंत्र-और-वर्द्धमानविद्या पढी. और सामको टेशनपर वापिसआये, गुजरानवालके श्रावकलोगोने मुनाकि-महाराज-शांतिविजयजीसाहब यहांपरतशरीफ लाये है, उनकी मुलाकातकों जानाचाहिये, कितनेक श्रावकलोग शामकेलबजे टेशनपर वास्ते मुलाकातको आय, और कहनेलगे आप शहरमें चलिये, महाराजने कहा-में-इसवरहन-सफर हुं-और--शहर पुलतान जानेकेलिये इधर आयाहूं. इसलिये फिरकभी देखाजायगा, शहरगुजरानवाल टेशनसें रैलमें सवारहोकर-लाहोर-राविंड-और-खानावल जंकशन होते दुसरेरौज शहर-सुलतान-पहुचे, टेशनपर श्रावकलोग वास्ते पेशवाइकों आयेथे शहरमें लेगय. असलमें मुलतानके श्रावकोने महाराजको इसलिये बुलायेथेकि-चतांवर-दिगंवर श्रावकोंकी आपसमें धर्मचर्चाकेवाग्में हमेशा वहेसहुवा करतीथी. महाराजने वहांजाकर जाहिरकियाकि-जिकिसी श्रावकको धर्मच के बामें-जो-कुछ पु टनाहो- छपवाकर पुट, जबाव भी उसका छपवाकर दियाजायगा, ताकि-काइकिसमकी रदबदल-न-होसके, महाराजने करीब दोमहिनके शहरमुलतानमें कयामाकिया, किसी श्रावकने कोड सवाल धर्मके वाग्में छपवाकर नही पुरे, व्याख्यान धर्मशालका हमेशां करतेथे, इनदिनोंमें पनरांनजीर लिखकर महाराजने मुलतानके जैन श्वेतांवर मंदिर की दिवारपर आइनमें जडवाकर लगवादिइ, और श्वेतांवर श्रावकोसे यह बात कहीकि-अगर कोइ तुम लोगोंस जैनवतांवर मजहबके बाग्मे कुछ पुल-नो इसको
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