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सवाने-उमरी. देखकर जवाबदियाकरो, मुलतानके जैनश्वेतांबर श्रावकोने महाराजसे-वास्ते चौमासेके-बहुत आजीजीकिइ, मगर महाराजने मुल्क दखनके श्रावकोंकी अर्ज-पेस्तर-कुबुल करलिइथी-इसलिये-आपाहवदी तेरसकेरौज शहर मुलतानसे रवानाहोकर-लाहोर-आये,
और खयालकियाकि-इतनी दुर आयेहै-तो-पेशावरभी होतेचले जैनतीर्थ गाइडकेलिये-जो-कोइ पुराने लेख मिलेगें अपनी नोटबुकमें दर्जभी करतेचलेगे, गरजकि-महाराज-लाहोरसे पेशावरगये, और वहांसे लोटकर लालामुसा जंकशन होते तीर्थ-भैराकी-जियारतकों गये, वहांकी तवारिख अपनी नोटबुकमें लिखलिइ, बीतभयपतननगर इसी भेराका नामहै, वहांसे लाहोरआये, और लाहोरसे-देहली-आगरा-भुसावल-मनमाड--कल्यान होते पुना टेशन उतरे, और वहांसे खुश्कीरास्ते-जुन्नेर-जानेकेलिये रवानाहुवे रास्ते वारीश खूब होनेकी वजहसें नदी-नाले-चढगयेथे मुकाम मजकुरकों-न-जासके, वापिस लोटकर खिडकी टेंशनसे रैलमें सवारहुवे, और कल्पान-भुसावलहोते-आकोला गये, और संवत् ( १९६४ ) की वारीश वहांपर गुजारी. व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे, पयूषणपर्व-उमदा तौरसे खतमहुवे, इनदिनोंमें ललितविस्तरा-द्वात्रिंशका सिद्धसेनदिवाकर-अष्टक हरिभद्रमरि-अंगुलसितरी-कालसप्तति--और-युगप्रधानयंत्र वगेरा ग्रंथ बांचे, आसोजमहिनेकी शुरुआतमें जब प्लेगबीमारी जोरशौरसे चलनेलगी और श्रावकलोग बहारगांव चलेगये, महाराज-कस्बे बालापुरकों तशरीफ लेगये, और आधीवारीश वहांपर खतमकिइ, इनदिनोमेंकवि-सुरजमलजी-शहर-उदयपुर मुल्कमेवाडसें महाराजके दर्शनोको बालापुर आये, और गुरुभक्तिपर-कवित्त-दोहे वगेरा बनाकर सभामें सुनाये.
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