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________________ सवाने-उमरी. (८१) 3 ( कवित्त,-] विद्यासागर और न्यायके रत्नआप, मुनिश्रीशांतिविजय तपधारीहै, मायासेविरक्त प्रभुनामके सयुक्त, दिनकरसो प्रकाशसदातिमिरनाशकारीहै जिनमतको दिपावे मूत्रसारकोवतावे,दयाकेनिधान मुनिज्ञानकभंडारीहै, जैसेहैमुनिराजभविजनकेसारेकाज, जिनकेआचारीजिनकोवंदनाहमारीहै ॐ ( दोहा, ) भारतवर्षके वीचमें,-धन्यहै ये अनगार, सुरजमल्लभी वंदना,-करता वारंवार, [ गुरुभक्ति पर पद,-] (रागिनी-भैरवी, ) मुनिजी ! जिनमतमें परवीन, न्यायरत्न अरू विद्यासागर, उपमा जगने दीन, मुनिजी, १ पंचमहावत धारक प्रभुके,-चरन सरनमें लीन, मुनिजी, २ शांतिविजयजी साधु संवेगी,-मोहरिपु कियाछीन, मुनिजी ३ परमकिया उपकार महामुनि,-तीनतत्वमें लीन, मुनिजी, ४ बारबारहै वंदना मेरी,-जानतहो गुन तीन, मुनिजी, ५ इनदिनाम द्वादशारनयचक्र-धर्मबिंदु--ज्ञानबिंदु-और--पाचनाथचरित ग्रंथ महाराजने वांचे, और वारीश खतम किइ.-.. [संवत् १९६५ का-चौमासा-शहर दखन-हैदराबाद. बादवारीशके पोषवदी दुजकेरौज बालापुरसे ओशियानगरीकी जियारतकों जानेका इरादाकिया और पारसटेशनसे रैलमेंसवार होकर-भुसावल-खंडवा-अजमेर-फुलेरा-और-मेरटारोड होतेहुवे जोधपुरटेशनपर उतरे, मुकाम जोधपुरसे (१८) कोसके फासले ११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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