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( ७८ ) सवाने-उमरी. पुनम गुजारी, माघवदीमें महाराजकी चाची-शहर भावनगरसेवास्ते दर्शनोको शहर पुना आये, कुछदिन महाराजके मुखसे शास्त्र मुना, और-तारीफ करने लगेकि- हमारे--खानदानमें--सापुत्र पैदाहुवा जिसने परमेश्वरके नामपर अपनी जिंदगी जायाकिइ, पुत्रहो-तो-औसाहो, आजतक जैसे-तुम-अपने धर्मपर पावंदरहे आईदेभी रहना, एक मरतबा अपने वतनकोंभी चलना. और सब कुटुंबके लोगोकों तालीम धर्मकी देना, तुम थोडे अर्सेसे-जो-रैलमें बेठतेहो-इससे तुमको-कोइ-नहीमानेगे जैसा खयाल मतकरना, तुमकों-तो-सबमानेगें, महाराजने कहा ! नहीं ! ! जैसा खयाल नहीहै, बल्कि ! मुजे मुल्क गुजरातके कइ श्रावकोंने अर्ज गुजारीश किइहैकि-आप-इधरके मुल्कमें पधारे, मगर मुल्क गुजरातमें-मुनि महाराज अकसर ज्यादह सफर करतेहै, और इधरके मुल्कम-कमआते जातेहै इसलिये इधरके मुल्कमें सफर करना ज्यादह फायदे मंदहै,
और जब ज्ञानिदृष्ट भावहोगा उधरभी आना बन सकेगा, अठारां रोज महाराजकी चाची-शहर पुनेमें रहे और फिर अपने बतनकों गये,
[ संवत् १९६४ का चौमासा शहर आकोला. ]
माघसुदी (१०) मीके रौज महाराज पुनेसे रवाना होकरकल्यान-मनमाड-होतेहुवे शहर धुलियाकों गये, और करीब देढमहिना वहांपर कयाम किया, किताव त्रिस्तुति परामर्श छपकर यहांपर आगइ और जिन जिन महाशयोने मगवाइथी, भेजीगइ, इस अर्सेमें शहर-मुलतान-मुल्क पंजाबके जैनश्वेतांबर श्रावकोंने बजरीये-खतके अर्जकिइकि आपहमारे शहरमें कदमरंजा फरमावे और हमकों तालीम धर्मकी देवे,महाराजने उनकी अर्जकुबुल किइ, और संवत्(१९६४)के चैतसुदी एकमके रौज धुलियासे खानाहोकर ब-मुकाम-पाचोरा गये. और वहांपर करीब एकमहिना कयामकिया, पाचोरेसे वैशाखमुदी
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