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सवान-उमरी. ( ७७ ) और रैलमें सवारहोकर-मधुपुर-पटना-मोगलसराय जंकशन होते मिर्जापुर गये, वहांके जैनमंदिरोंकी जियारत किइ, दुसरेरौज मि.
र्जापुरसे रवानाहोकर-इलाहाबाद--कटनी-विलासपुर--नागपुरके टेशनोपर होते पारसटेशन उतरे, और बालापुर-जो-तीनकोसके फासलेपर खुश्कीराम्तेवाके है गये, करीब पनरां रोज वहां ठहरे, आषाढमुदीमें बालापुरसे रवानाहोकर-भुसावल-पाचोरा-मनमाड और-कल्यानकेरास्ते शहर-पुना-गये, और संवत् (१९६३) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशां करतेथे, और सुननेवाले कसरतसें जमाहोतेथे, आसोजके महिनेमें जब-प्लेगवीमारी जोरशोरसे चलने लगी,-और लोग इधरउधर बहारगांव चलेगये, महाराजने मुताबिक जैनशास्त्रके देखाकि-अगर किसी किसमकी-आफत-आजावे-तो--चौमासेमेंभी-मुनि-उसजगहकों छोडदेवे, कल्पसूत्रकी मिशालहै कि
___ ( अनुष्टुप-वृत्तम् ) 5 अशिवे भोजनाप्राप्तौ-राजरोग पराभवे,
चातुर्मासिक मध्येपि-विहाँ कल्पतेन्यतः .
बीमारीका सबबहो-भिक्षा-न-मिलतीहो-या-राज्यकी तर्फसे कुछ पराभवहो-तो-वारीशके दिनोभी-मूनि-एक जगहसे दुसरी जगह चलेजाय, महाराज शहर पुनासे रवाना होकर-लुनीगांवगये, जो पांचकोसके फासलेपर वाकेहै, करीब एक महिनेके वहां कयाम किया, और जब बीमारी प्लेग-कमहुइ-शहर पुनामें वापिस आये. मूरिमंत्रकल्प-वर्द्धमान विद्याकल्प-भक्तामरकल्प-औरशक्रस्तवकल्प वगेरा शास्त्र इनदिनोमें बाचे, और मोशमशर्मा शहर
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