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________________ vnhAM . 06 -'- '. . . h . t . .. . . . सवाने-उमरी. [नियुक्ति आवश्यकसूत्र-अध्ययन पहिला, ] थुभसयभाउगाणं-चउवीसं जिणघरे कासि सव्वजिणं पडिमा-वन्नपमाणेहिं नियएहिं, ? इसपाठसे साफजाहिरहैकि-भरतचक्रवर्तिने चौइस जैनमंदिर बनवाकर उसमें चौइसमूर्ति तीर्थकरोकी रखी, जैसाकि उनका रुपरंगथा, अगरकोइ तेहरीरकरेकि-हम नियुक्ति नहीमानते--तोउनकों मालूमकरना चाहिये भगवतीसूत्रमें क्यालिखाहै, ? उसमे लिखाहै-नियुक्तिकों मानना चाहिये, अगर इसबातपर किसीकों शकहो-तो-भगवतीसूत्रकों खोलकरदेखलेवे. भगवतीसूत्रकों दुढिये मजहबवालेभी मानते है, उसमें मूर्तिकामानना साफजाहिरहै, (भगवतीसूत्रका पाठ-शतक (२५) मा-उद्देशातीसरा,) सुतथ्थो खलु पढमो-बीयो निज्जुत्तिमिसओ भणियो, तइयो निरवसेसो-एस विहिहोइ अणुयोगो, देखलो ! इसपाठमें साफलिखाहैकि-नियुक्ति-मानना, फिर कौन कहसकताहैकि-हम-नियुक्ति नहीमानते, सबुतहुवाकि-बत्तीससूत्रके मूलपाठमें-नियुक्ति मानना लिखाहै, जोलोग इनकारकरतेहै गलतीपरखडे है, उवाइसूत्रके-मूलपाठमे तीर्थकर महावीस्वामीके . रुबरु अंबडश्रावकने अरिहंतकी प्रतिमाकों वंदना-नमस्कारकरना कुबुल किया, सबुत उसका इसपाठसे साफजाहिर है, देखलो ! उवाइसूत्रका पाठ. अंबडस्सणं परिवायस्स नोकप्पड अन्नउथिएवा-अनउथियदेवयाइं वा-अन्नउथ्थियपरिग्गहियाई अरिहंतचेइयाई वा-वंदित्तएवा-नमंसित्तएवा-नन्नथ्य-अरिहंतेवा अरिहंतचेइयाणिवा, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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