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(४४) सवाने-उमरी.
माइने इसपाठके-ये-हैकि-मुजे गेरमजहबीकों-उनके देवोको और गेरमजहबवाले लोगोने अरिहंतकी मूर्तिको लेकर अपने देव. रुप करलिइहो-उसकों वंदना-नमस्कार करना मुनासिबनही, मगर जिस अरिहंतकी मूर्तिकों गेरमजहबके लोगोने लेकर अपने देवरुप-न-बनालिइहो-और-मुताविक फरमान जैनशास्त्रके होउसकों-वंदनानमस्कार करना मुजे मंजूरहै. देखिये ! यह सबुत किसकदर सच्चा और-पावंदहैकि-जिसपर कोइकिसी तरहकी हुज्जत-या-तकरीर नहीकरसकता. इंढियेलोग चैत्यशब्दका माइना-साधु-करते है, मगर चैत्यशब्दका-माइना साधु नहीं है. बल्कि ! हैमकोशमें चैत्यशब्दका माइना जिनमंदिर और जैनप्रतिमा लिखाहै
· चैत्यं जिनोकस्तबिंबं, इतिहैमः,___ आनंद श्रावकके पाठसेभी साफ जाहिरहैकि-वह-तीर्थकर महावीरके सामने गया, और उसनेभी वही नियम इख्तियारकिया जो उपर लिखागयाहै, अगर इसका कोइ सबुत तलब करनाचाहे तो-इसआगे लिखे पाठकों देखकर मालूम करले, उपाशक दशांगसूत्रका पाठ बतलाते है, देखलेवे,
नो-खलु-मे-भंते ! कप्पद अज्जपभिइंचणं--अन्न उथिवा-अन्न उस्थियदेवयाणिवा-अन्नउथियए-परिग्गहियावा-अरिहंतचेहयाइंवा-वंदितएवा-नमंसितएवा,--
माइने इसपाठके और दिगरपाठ जो उपर अंबडजीश्रावकका लिखचुके-दोनोंके-एक होते है, देखिये ! अंबड-और-आनंदश्रावककी पावंदी धर्ममें कैसीथीकि-जिनोने इतनी सख्ती इख्तियार
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