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(४२) सवाने-उमरी. नाहो खुशीसे पुछे, मगर शर्तयह है व्याख्यानमें जोबातचलीहोउसीमजमूनको पुछे, विनासंबंधकी बात-न-पुछे, और अगर तुमारी भूलपर गुरु-सख्तसुस्त बातकहे-तो-उसकाबुरा-न-माने, बल्कि ! हकसमझे,
(सूचना,) तीर्थकरदेव समवसरणमे बेठकर मालकोशरागमें तालीमधर्मकी देतेथे, जमानेहालमेंभी कोइ-मुनि-रागरागनीमें व्याख्यानदेवे-तो-कोइहर्ज नहीं है.
(व्याख्यान धर्मशास्त्रके (१३) कानुन खतमहुवे,)
F[छावनी मुरारमें मूर्तिपूजापर दियाहुवा व्याख्यान,
दुनियामें मूर्तिपूजा कदीमसे चलीआइ, मूर्तिपूजाके निषेधक पुरुष कइहुवे मगर मूर्तिपूजा हमेशांकेलिये कायमही रही, गरजकि -विनामूर्तिके किसीकाकाम नहीचला, मूर्ति-प्रतिमा-चैत्य-बिंब प्रतिकृति-अक्स-औरतस्वीर-ये-सवमूर्तिहीके नाम है, अगरकोइ कहे, मूर्ति-जीवहै-या-अजीव ?-(जवाब) शास्त्र जीवहै-या-अजीव, ? अगर अजीवहै-तो-वतलाइये !-अजीव पदार्थकों क्यों मानागया, ? अगर कहाजाय-शास्त्रके देखनेसें-ज्ञानपैदा होताहै-तो मूर्ति देखनेसेभी उसदेवके स्वरुपका ज्ञान पैदाहोताहै-ऐसा-माननेमें क्याहर्ज है, ? ____ भगवतीसूत्रके मूलपाठमें ब्राहमीलिपिकों नमस्कार कियाहै, सोचो ! ब्राहमीलिपि ज्ञानकी स्थापनाहै-या-नहीं ? अगरहै-तोस्थापना निक्षेपा मानना मंजूरहुवा, आवश्यमूत्रकी नियुक्तिमें भस्त चक्रवर्तिने अष्टापदपर्वतपर जैनमंदिर बनवाये ऐसाखुलापाठहै,
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