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NAMAN
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सवान-उमरी. ब-खूबीदेखे, गानेवालेके स्वरकी नकलकरना सरंगीकाही कामहै, दुसरे बाजे-गत-तोडे-और-आलाप वेशक ! देसकते है, मगर गलेकी नकल करना सरंगीकोही याद है. महाराज सरगम-तराना ध्रुपद-भैरवी-कालिंगडा--जोगिया--आसाउरी-वेलावल-सारंगजीला झींझोटी-कमाच-पीलु-धनासीरी-कल्याण--सोरठ-विहाग -और-जेजेवंतीवोरारागरागनी अछीतरह गानेलगे, और धर्मशास्त्रके व्याख्यानमेंभी रागरागनीसें तालीम धर्मकी देतेरहे,
(संवत् १९४७ का-चौमासा-शहर देहली, )
बादवारीशके जयपुरसे रवानाहोकर सांगानेर गये, चंदरौन वहांठहरकर वापिस जयपुरआये, और मुकाम मजकुरपर कयामकिया, इसअर्सेमें महाराजके गुरुसाहबभी-जोकि-जोधपुरमें-वारीशके अय्याममें मुकीमथे, मुनिमंडलके शाथ बडेशान-व-सौकतसें जयपुरमें तशरीफलाये, और महाराजभी गुरुजीकी पेशवाइमें गये, जयपुरमें करीब (२०) रौजतक शाथठहरे, इसअर्सेमें गुरुजीकाऔर-महाराजका आपसमें कुछतकरार होगया, और महाराज नाराजहोकर गुरुजीसें जुदेहोगये, चैतवैशाखके दिनोमें अलवर होतेहुवे शहरदेहलीकों तशरीफलेगये, और संवत् ( १९४७) की वारीश वहांपर गुजारी, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशांकरतेथे, और सुननेवाले लोग कसरतसे जमाहोतेथे, आचार्यसिद्धसेन दिवाकरकी बनाइहुइ द्वात्रिंशका-आचार्य हरिभद्रमूरिका बनायाहुवा लोकतत्वनिर्णय और षड्दर्शन समुचय मूलपाठ हिब्ज यादकिया, एक रोज महाराज देहलीकी चारोंतर्फ पुरानेमकान-पंढहेर-और-नामीग्रामी इमारतें देखनेकों गये, और कहपुराने मकानात देखकर खयालआयाकि-क्याक्या ! ! इमारते दौलतमंदोने बनाइथी और
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