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सवाने - उमरी.
( ३७ ) अखीरतक इसगरजसे वांचेकि- इनमें - धर्मके बारेमें किसतरहबयान किया है, अकलमंदोंका कौलहैकि - हरमजहबकी किताबोंका मुलाहजा करे, और उनको पहिचाने. इन दिनोंमें महाराजने संगीतकलाका इल्मभी हासिल किया, सातस्वर - तीन ग्राम- एकीस मूर्छना-औरउनंचासवान - इनको जाननेवाला शख्श संगीतकलाका इल्म उमदा aौरसे पासकता है. भैरव - मालकोश - दीपक - हिंडोल-मल्हारऔर-श्री-ये-छ- रागके नामहै, पेस्तर के जमानेमें घांणीके सामने बैठकर भैरवराग गानेसे बिना बैलके घांणी चलजातीथी, पथरकी शिलाके सामने बैठकर मालकोश राग गानेसे पथर - पानी होजाताथा, दीयेके सामने बैठकर - दीपक राग गानेसे - विना दियासलाइ दीपक जलजाताथा. हिंडोलेके सामनेवेठकर हिंडोल राग गानेसेवह झुलने लगताथा, और श्री रागके गानेसे गवैयेको दौलतकी तंगी नहि रहती थी, आजकल रागमे वैसी ताहसीर नहीरही, नवैसे गानेवालेरहे, जैसा जमाना है वैसीचीजे मौजूद है. वीणा-सितार - दिलरुबा -- मुरशिंगार - सरोद - सरंगी - ताउस - हारमोनियमबेला- अलगोजा - बंशरी - और - जलतरंग वगेरा - बाजे - गानेवालेके कंठको मदद पहुचा सकते है, जब तीर्थंकरदेव - मालकोशरागमें तालीमधर्मकी देतेथे इंद्रदेवते दिव्यवाजोसे स्वर पुरतेथे, आजकलभी अगर कोई मुनि - रागरागिनीमें तालीम धर्मकी देवे - तो कोई हर्ज नहिहै, रागरागनी निहायत उमदाचीज है, अगर तालस्वरसें परमात्माकीइबादत किइजाय तो अशुभ कर्मकी निर्जरा और औरपुन्यानुबंधि- पुन्यमाप्तिका हेतु है. जिसकों संगीतकलाका इल्म नही है. वे कहते है रागरागनी कुछ चीज नही. मगर उनके कहने से संगीतकला कमजोर नही होसकती, जैनागम-स्थानांग -और-अनुयोगद्वारसूत्रमें स्वरोका क्यान उमदा तौरसें दर्ज है, जिनकों शकst
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