SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नसीहत-उल-आम. ( ३६५ ) बनीरहे, जोलोग रोटियोंके मोहताजहै उनकेलिये यह अमर दुसवार है, मगरदौलतमंदोकेलिये कोइ मुश्किल बात नही, जवार-बाजरीकी रोटीभी अगर दुरुस्तगीके शाथबनाइगइहो-तो-खानेमें कुछ हर्जनही, गरीबलोग इसीसे अपनागुजर कियाकरतेहै, चाहेजितनी मिठाइ खाओ मगर मुकाविले रोटीदालके कोइचीज नही, लाखदवाकी एक दवा दूधहै, जोलोग हमेशां दुधका इस्तिमालरखतेहै ताकतवर बनेरहतेहै, मगर दुध जैसा होनाचाहिये जिसमें पानी-न-मिलाहो, खानाहजम होनेकेलिये दहीभी एक फायदेमंद चीजहै, गर्मीकी मौसिममें जीरा-और-नमक मिलाकर दहीं खानेसे दिमाग तररहताहै, हरेक शख्शकों चाहिये शुभहके वख्त कुछचीज खायाकरे एकदम बारांबजेतक भुखारहना अछानही, जिससे शरीरमें हरारतपैदाहोजाय, अष्टमी चतुर्दशी वगेराह पर्वकेरोज व्रत-उपवासकरनाभी लाजिमहै, धर्मकों भुलजाना और दुनयवीकारोबारमें मशगूलहो जाना ठीकनही, दुनियामें धर्म-एक-आलादर्जेकी चीजहै, गौके दिनोमे शुभहके वख्त-तरचीज-खाना बहेत्तरहै मगर इतना याद रखनाकि निसरोज बदहजमी हुइहो-फाका-रखे, ज्यादहखानाखानेसे आदमीकी जानको तकलीफ पहुचती है, [दोहा.] दाहनेस्वर भोजनकरे-बाये पीवे नीर, बायी करवट सोवतां-होय निरोग शरीर. सूर्यस्वरमें खाना और चंद्रस्वरमें पानी पीना तंदुरस्तीकी अलामतहै, एक शहरमें-चारभाइ रहतेथे, उनमें तीनभाइ अछीतरह रोजगारकरके पैदाशकरतेथे और एक भाइ बेरोजगार रहताथा, मगर खानेकेलिये सबसे पहले मुस्तेज होजाताथा, एकरौज तीनभाइयोने मिलकर उसको कहाकि-कुछ धंदेरोजगारमें लगो, बेठेबेठे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy