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JANAM
तवारिख-तीर्थ-आबु. (१२९ ) बखूबी ( ५०० ) आदमी वेठसकतेहै, बडासंगीन रंगरोशन किया हुवा बतौरदेव मजलीशके देखलो ! मूलनायक तीर्थकर रिषभदेव भगवानकी-मूर्ति-सवधातकी बनीहुइ करीव (४) हाथवडी निहायत खूबसुरत तख्तनशीनहै, इसमें ज्यादाहिस्सा सोनेकाऔर-बाकी दिगरधातुकाहै,
इसपरलिखाहै-संवत् (१५६६) फाल्गुनसुदि (१०) मी-दिने-श्रीअचलचढ्दुर्गे-राजाधिराज श्रीजगमालविजयराज्ये-प्राग्वाटज्ञातीयसं-कुरपालपुत्रसं-रनसं-धरणसं-रत्नपुत्रसं-लाषासं-सलषासं-सजासं-सालिंगभासं-सुहागदेपुत्रसं-सहसाकेनभासं-सारदे पुत्रषिमराजदि-अनुपमदेपुत्र--देवराज--पिमराज भारमादेपुत्रजयमल-मनजीयुतेन-निजकारित चतुर्मुख प्रासादे-उत्तरदारे-पित्तलमयमूलनायक श्रीआदिनाथ विंबंकारिततपगछनायक सोमसुंदरसूरि-तत्पदे मुनिसुंदरसूरि-तत्पदेजयसुंदरसूरि-तत्पदेविशालराजमूरि-तत्पदे रत्नशेखर मूरि-तत्पदेलक्ष्मीसागरमूरि--श्रीसोमदेवनारीशष्य--श्री सुमतिसुंदरसूरि-शिष्य--गछनायक श्रीकमलकलशसूरि शिष्य-संप्रतिविजयमान-छनायक --श्रीजयकल्पाणसु. रिभिः श्रीचरणसुंदरमूरि प्रमुखपरिवारयुतैः प्रतिष्टितं,
मुलनायकजीकी तर्फ जो मूर्ति जायेनशीनहै उसपरसंवत् (१५१८ ) का लेखहै, उनकेपीछाडी जोदो
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