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( १३० ) तवारिख-तीर्थ-आबु. मूर्तियेहै उनमें एकपर संवत् ( १५१८ ) और दूसरीपर (१५६६ ) का लेखहै, बायीतर्फजो तीनमूर्तिये है ऊनमेएकपर संवत् ( १५६६ ) एकपर संवत् (१५२९)
औरएकपर संवत् (१५६६) का लेखहै, मूलनायकजीकी दोनोंतर्फ-जो-दोमूर्ति-खडेआकारहै-बेभी-सवधातकी बनीहुईहै, रंगमंडपकी दाहनीतर्फके आलेमें तीर्थकरनेमनाथ भगवानकी मूर्ति-और-उपरकी मंजिलपर चौमुखामहाराजकी चारमूर्तियोपर संवत् [१५६६] का लेखहै
औरएकपर बिल्कुल लेखनही-ये-कुल्ल (१४) मूर्तियां-वजनमे (१४४४ ) मणकी शुमारकिइजातीहै, इनमें ज्यादा-सोना-और तांबा-पीतलवगेरा दिगरधातु कमहै, मंदिरकी छतपर जाकरदेखो तो तमामकफियत आबुपहाडकी-और-मंदिरोंकी नजरआतीहै, किसकदर हरियाली तरहतरहके द्रख्त-चिश्मेआव-नदीनाले-और. छोटेछोटे गांवनजरआतेहै ! एकउमदा कालीन वीछाहो, औरदेखने वाले आस्मानकी शैरकररहेहो, पासमें एकशिखरपर कुंभाराणाजीके महेल-और-सावन-भादवा तालावके निशानातवनेहुवेहै, अचलगढके मंदिरकीजियारत करके नीचे आनाचाहिये, अचलगढ' गांवमें पांचसातघर जैन श्वेतांवर श्रावकोंके आवादहै, यात्रीअचल-- गढसें वापीस उसीरास्ते देलवाडेआवे, ___ आबुपहाडपर पेस्तर पारसपथर मिलताथाकि-जिसकेछुनेसें लोहा-सोना-बनजाताथा, मगरयेवातें अवख्यावमेंभी नजरनहींआती, न-वैसेनेकवख्त आदमीहै-न-३-चीजेंहै, पेस्तरयहां ऐसी ऐसीजडीबुटीयें होतीथी-जिसकोंघीसकर आदमी अपनेबदनपर
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