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________________ सवाने - उमरी . ( २७ ) ( यानी ) कंठाग्रकिये. ये-दोनां किताबे जैनमुत्रोकी - और - जैनन्यायकी एक कुंजी है, जोशख्श इसको समझकर हिब्ज यादकरेगा जैनतत्व - और - स्याद्वादन्यायमें होशियार होजायगा. [ संवत् १९४३ का - चौमासा - शहरपालिताना, ] बादवारीशके सुरतसे रवानाहोकर भडौचकेरास्ते से शहरबडोदा आये, इनदिनों में स्थानांगसूत्र बाचा. बडोदेसें रवानाहोकर शहर अहमदाबाद- वढवान -लींमडी -- बोटाद - और -- वल्लभीनगरीकी दोवारासफर करते हुवे वारीशके मौकेपर - शत्रुंजयतीर्थकी तराइमेंशहरपालितानेकों गये, जिसका बयान पेस्तर लिख भी चुके है, संवत् ( १९४३ ) की - वारीश - वहांपर गुजारी, इसअर्से में महाराज -बआज - खांसी - मुन्तीलारहे, करीबतीन महिनेके कोइइल्म नही पढागया, www. धर्माख्याने श्मशाने च रोगिणां या मतिर्भवेत्, यदि सा निश्चला बुद्धि: - को-न- मुच्येत बंधनात्. १ धर्मकीबाते सुनतेवरुत - मसानमें - और - बीमारीकी हालत में आदमीकी बुद्धि जैसी धर्मपरपावंद रहती है अगर वैसी हमेशांनी रहेतो - कौनऐसा शख्श है - जो - संसारके बंधन मे-न-छुटसके, ? aarthी हालत में महाराज हमेशां पंचपरमेष्टिका जापकरतेथे, अपथ्य खानपानसें परहेजरखतेथे, और किताबवगेरा वाचते रहते थे. महाराजकी बीमारी सख्त - नहीथी, सख्तबीमारी वह होती है जिसमे अनाजखाना बंदहोजाय - रातकों-नींद-न-आवे, चहेरेकी रवन्नक बिल्कुल बदलजाय, आदमीको पहिचान सकेनही, शर्म बिल्कुल छुटजाय, अस्थि-मांस - और - खून - बिल्कुल सुकजाय, रातकेवख्त Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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