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________________ (२८) सवाने-उमरी. आस्मानमें-उत्तरदिशातर्फ-जो-ध्रुवका-तारा उदयहोताहै-वहसख्त बीमारीवालेको अपनीनजरसें-न-दिखाइदे, कानमें अंगुली लगाकर देखनेसे जो अंदर घोरशब्द होताहै-सुनाइ-न-दे, अपनी आंखोंसे अपनेनाककी शिखा-न-दिखाइदे, अपनीजबान मुंहसे बहारनिकाले-तोभी अपनी आंखोसे-न-दिखाइदे, ये-सबसख्त बीमारीके निशानहै, वीमारशख्शकों हरवख्त साफहवामें रखना चाहिये, बिछौना-और-कपडेभी साफरखना अछाहै, बीमारशख्शकों अकेला छोडना-या-बहुतआदमी जमाहोकर उसकेपास बैठेरहना अछानही, अगर बीमारी बढतीजाय-या-सख्तहोजायतोभी-बीमारशख्शके सामने ऐसा-नहीकहनाकि-तुम-इसबीमारीमें मरजाओगे, बल्कि ! ऐसाकहनाकि-तुम-जल्दी अछेहोजाओगे, बीमारशख्शके-सामने हमेशां धर्मशास्त्रकी बातें कहतेरहना अछाहै, उसके सामनेबेठकर रौना-नही, बीमारकों बहुतदिनतक एकही मकानमें रखनाअछानही, दिनमेसीना-रातकोजागना, न. साकरना, मैथुनसेवना, ज्यादा बोलना, ज्यादागर्मीमे-या-ठंडमें बैठेरहना, या-पैशाव-पाखाना-रोकना बीमारकोलिये बिल्कुलअ. छानही, महाराजकी बीमारी सख्त नहीथी. उमर लंबीथी, इस लिये आरामहुवा, इसअर्समें-महाराजकी बहेन मौजा-अमरेलीसे आइ, और कहनेलगी, आपकी तकदीरमें दीक्षालिखीथी, खेर ! मुजकों दर्शनहुवे यहीगनीमतहै, चंदरौज वहांठहरी, और महाराकेमुखसे धर्मकीहिकायते सुनतीरही, चौमासेकी अखीरमें महाराज कर्मग्रंथकीटीका बांचतेरहे, कातिकसुदी पौर्णमाकेरौज पहाडशत्रुजयपर जाकर तीर्थकी जियारतकिइ, और पुराने मंदिरमूर्ति शिलालेखोंकी नकल अपनी नोटबुकमें दर्जकिइ, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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