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सवाने - उमरी.
( २९ )
[ संवत् १९४४ का - चौमासा शहर राधनपुर, ]
बादवारिशके महाराज पालितानेसें रवाना होकर - महुआ-तलाजा - गोधा की सफरकरते दोवारा भावनगरकों गये, और करीब देढमहिनेके वहां कयाम किया, व्याख्यान धर्मशास्त्रका हमेशांदेते थे, और हरवख्त धर्मकेबारेमें बहेसहोतीथी, भावनगरसें रवानाहोकर बल्लभी -लींमडी - वढवान - और - धांगधराकी सफर करतेहुवे पाटन शहरकों गये. वहांपर राजाकुमारपालके वख्तका एकमशहूर कुतुबखाना - (यानी ) जैन पुस्तकालय देखा, और एकमहिना वहां कयामकिया, पाटनसें रवानाहोकर रियासत राधनपुरकों गये, और संवत् ( १९४४ ) की वारीश वहां पर गुजारी, आर्यदेशदर्पण किताब - महाराजने यहां बनाई, जोकि - उसीसालमें छपकर जाहिर हो चुकी है. इसमें मुताबिक जैनशास्त्र के फरमानसें आर्य-अनार्य देशोका खुलासा दियाहै, पंचाकसूत्र और टीका महाराजने यहांबांची, स्याद्वादमंजरी जोकि - जैनमजहबका एकतर्क ग्रंथहै यहां पढा. और उसका मूलपाठ हिब्ज याद किया, इनदिनोंमें महाराज बौध मजहबके पुस्तकोंका मुलाहजा करते रहे, उसमेंसे कुछबातें बौधमreast siपर बतलाते है,
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कइलोग कहते है जैन और बौधमजहब एकहै, और करकहते है - एक-दुसरेकी शाखा है, मगर जैन-बौध - किसीसुरत एकनही, न - एकदुसरेकी शाखा है, जैनमजहब तीर्थकर रिषभदेवके वख्तसे जारी है, बौधमजहब पीछेसे जारी हुवा है, - राजा शुद्धोदनके पुत्र-गौतमबुद्धका जन्म - नयपालकी तराइमें सुंसमार पर्वतकेपास कपिल वस्तुग्राममें हुवा, जैनमजहबके और बौधमजहबके उसूलमें बहुत फर्क है, जैनमजहब में तमामवस्तु उत्पात - व्यय - और -धौव्ययुक्त
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