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सवाने-उमरी. मामा-होतेथे. जबउनोने सुनाकि-हमारा-भानजा-जो साधुहोगया है आजरोज यहां आनेवाला है, चारकोशतक सामनेगये और वाद मुलाकातके उनोने महाराजसेकहा-तुम-अपने वालिदकेघर एकही बेटेथे और साधु होगये यह तुमकों लाजिम नहीथा, महाराजने कहा-आप-बखूबी जानते हैकि-दुनियामें-बडेबडे राजेमहाराजे होगये जिनोने अपना राजपाट छोडकर दीक्षा इख्तियारकिइ-तोमालूम होताहै धर्मकुछ बडीचीजहै, महाराजने वहांभी आमलोगोको व्याख्यान धर्मशास्त्रका सुनाया. और सबलोग खुशहुवे. फिर महाराजके मामानेकहा-जोकुछ हुवा अछाहुवा, चलो ! अब घरसे भिक्षा लेआओ, महाराज उनकेघर भिक्षाकों गये। वहां उनकी मामीनेभी वहीकलामकहे जो इनके मामाने कहेथे, और यहभीकहा कि-मैने-तुमकों लडकपनमें पालाथा, और अब साधुकेवेषमें देखतीहु-तो-बडारंज मा वूम होताहै, घरमे बेठकर क्या! धर्म नहि होताथा. ? महाराजने कहा बेशक ! होसकताथा मगर जैसा साधुपनेमें होसकताहै दुनियादारीकी हालतमें नही होसकता, औरभी महाराजने धर्मकी बातें सुनाइ, और भिक्षालेकर अपने मकानकों वापिस आये, करीब (१५) रोज वहां मुकीमरहे, फिर वल्लभीसे रवानाहोकर बोटाद-लीमडी-चढवान-और-धोलेराकी सफर करतेहुवे खंभातशहरकोंगये, वहांपरतीर्थस्थंभन पार्श्वनाथकीजियारत किइ. खंभातसें रवानाहोकर भडौचकों गये, वहांकी जियारत किइ, अश्वावबोध-और-शकुनिका विहारतीर्थकी तवारिख अपनी नोटबुकमे यहां लिखी, भडौचसे रवानाहोकर सुरतबंदरकों गये, और संवत् ( १९४२ ) की वारीश वहां गुजारी. आचारांग-अनुयोगद्वार-और ज्ञातासूत्र यहां बांचे. तत्वार्थसूत्रके दस अध्याय मूलपाठ और-प्रमाणनयतत्वलोकालंकार इसचौमासेमें हिब्ज याद किया,
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