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________________ सवाने-उमरी. ( २५ ) [संवत् १९४२ का-चौमासा-शहरसुरत, बाद वारीशके शहरअहमदाबादसे रवानाहोकर-धंधुका-बोटाद--उमराला--चावडी--होते तीर्थ--शत्रुजयकी जियारतकों गये, एक महिना वहां कयामकिया. और वहांसे शिहोर-वरतेज बगेराकी सफर करते शहरभावनगरमें पहुचे, जब अपने चचाके घर भिक्षाकों गये तब महाराजकी चाचीनेकहाकि-जिसरौजसे-तुमनेदीक्षा इख्तियारकइ उसके छमहिनेकेबाद तुमारेचाचेका इंतकालहोगया, कोइदिन एसा-नही-गुजरताथाकि-उनोने तुमकों यादन-कियेहो. तुमकों ऐसामुनासिब नहीथाकि-तुम-बिना कहेचले गये, और साधु होगये, घरमे कोइ आदमी नहीरहा, जब तुमारी यादआती है बिल्कुल रंजीदा हो जातीहु, महाराजने उनको धीरज दिइ और कहाकि-तुम-खुद समझदारहो, शब करो और तीर्थकरदेवोंकी इबादतकरो जिससे सब अछा होगा, एसा कह कर भिक्षालेके अपनेमकानकों आये, और एक महिनेतक शहर भावनगरमें ठहरे, एकरौज महाराजकी चाचीने कहा अगर तुम व्याख्यान धर्मशास्त्रका बाचना सिखेहो--तो--हमकों सुनाओ, दुसरेरौज महाराजने व्याख्यानसभामे बैठकर सबलोगोकों व्याख्यान धर्मशास्त्रकामुनाया, लोग खुशहुवे और तारीफकरनेलगकि दीक्षा लेना ऐसेही शख्शोका कामहै-जो-धर्मशास्त्रके माहितगार होकर आमलोगोकों धर्मका फायदा पहुचावे, ____एक महिनेकेबादभावनगरसे रवानाहोकर गोघाबंदरकों गये, और घनौघमंडनपारसनाथकी जियारतकिइ, गोघावंदरसें वरतेज गांव होतेहुवे वल्लभीनगरी जिसकों जमानेहालमें-वलागांव बोलते है आये, महाराजकी माता इसी वल्लभीनगरीकीथी, और उनके खानदानमें सिर्फ : एकहीभाइ लक्ष्मीचंदजी रहगयेथे, जो महाराजके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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