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( २४ ) सवाने-उमरी. वाचा, और यहांके पुस्तकालयोसे कइपुरानीपुस्तके देखी. जब वारीश खतमहुइ तो मुल्कगुजरातकों जानेकेलिये रवाना हुवे.
[संवत् १९४१ का-चौमासा-शहरअहमदाबाद, ]
विकानेरसे रवानाहोकर नागोर-जोधपुर-और-पाली होतेहुवे पंचतीर्थीकी जियारतकों गये.१-वरकाणा, २-नाडोल, ३-नाडलाइ, ४-घाणेराय, और-५-रानकपुर इनपांचगांवोकी जो-पंचतीर्थी कहलातीहै, जियारत किइ, और रानकपुरसे आगे पहाडकी घाटीकों पारकरके शहर उदयपुरकों तशरीफ लेगये, और वहांपर एकमहिना कयामकिया, चैतमहिनेमें वहांसेरवानाहोकर तीर्थकेशरीयाजीकी जियारतकों गये. जो वहांसे (१८) कोशके फासलेपर वाकेहै, जियारतकरके वापिस उदयपुर आये, और उदयपुरसें रवाना होकर शिरोही अनादराकी-सफर करते तीर्थआबुजीकों गये. आबुके जैनमंदिर ऐसेखूबसुरत शंगमर्मरपर उमदा और बेंमीशालकारिगिरिसे तामीरकियेहैकि-जिसकी-तारीफ-तवारिखोमें मशहूर है, वहांकी जियारतकिइ, और चंदरौज वहांपर ठहरे, बादइसके आबुसे रवानाहोकर पालनपुर-सिद्धपुर-ऊंझा-मेहसानाकी सफर करते शहरअहमदावादमें तशरीफ लाये, और संवत् (१९४१) की वारीश-वहांपर गुजारी, महाराजने योगवहनकरके इसचौमासेमे बडीदीक्षा इख्तियारकिइ. वैयाकरणभूषग-और-कुवलयानंदअलंकार मुहजबानीयादकिये,-कादंबरी-विक्रमोर्वशी-और-शकुंतलाना क-बांचा, अछीतरह संस्कृत जबानमें बोलनेलगे, और हरेकविषयपर शास्त्रार्थकरनेकी ताकात हासिलहुइ.
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