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________________ सवाने-उमरी. ( २३ ) कुछरौज ठहरकर गाजियाबाद-मेरट होते तीर्थ हस्तिनापुरकी जियारतकों गये. यह तीर्थ बडापुराना है वहांकी जियारत किइऔर फिर वहांसे देहली होतेहुवे मुल्क मारवाडकी सफरकों चले,-इन दिनोमें देहलीसे रवानाहोकर कुतुबमेहरोली फिरोजपुर-अलवर होतेहुवे शहर जयपुर आये, और एकमहिना वहांपर कयामकिया, जयपुरसे रवानाहोकर तीर्थफलौदी पार्श्वनाथकी जियारतको गये और वहांकी जियारतकिइ. वहांसे रवानाहोकर मेरटा-नागोरहोते शहर विकानेर जाते हुवे रास्तेमें-नोखेगांवमें-जव रातकों सोतेथे आधी रातकेवरुत एक सांपने आनकर महाराजके दाहने हाथके पंजेपर डंखमारा, उसवख्त दो-मुनिमहाराज-औरभी शाथथे जो दीक्षामें और उमरमेबडेथे, जबजहरने ज्यादहजोरदिया महाराजकी आंख खुली. और कहा मेरे दाहनेहाथमें बहुतदर्द होताहै,-न-मालूम क्याहुवा ? जिसश्रावकके मकानमें महाराज ठहरेथे-वह-और दोतीन शख्श और मिलकर लालटेनलेकर इधर उधर देखनेलगेतो-मालूमहुवा एक बडा लंबा सांप-एकवीलमें घुसरहाथा, इससे साफ जाहिरहुवाकि-महाराजकों-सांपने काटाहै. और दाहनेहाथके पंजेको देखातो खून मालूमहुवा. महाराजको यकीनहोगया मेरेदाहनेहाथके पंजेपर सर्पने डंकमाराहै. खुद सर्पका मंत्रजानतेथे पढना शुरु किया, और कुछदेरकेबाद सांपका जहरउतरा, पिछलीरात कुछ नींद आइ और आरामभी मालूमहुवा, शुभहहोते आगेकों रखानाहुवे और देसणुक-भीनासर होतेहुवे तीसरेरौज विकानेर पहुचे, संवत् (१९४०) की वारीश वहांपर गुजारी, और नयमदीपग्रंथ जवानीयादकरना शुरुकिया, जिसमें द्रव्य-गुण-पर्याय-नैयम -संग्रह-व्यवहार-शब्द-समभिरुढ-और-एवंभूतनयवगेरावयान है चौमासेकी अखीरतक मुहजवानी यादकरलिया, भगवतीमूत्रभी यहां Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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