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________________ सवाने - उमरी. सूर्योदयेपि निद्रामवलंबते चेत् महद्दारिद्रयं देहे आरोग्यं चेत्- महदैश्वर्य, ( २२ ) यः कांतासु - कनकेषु - न - लुब्धस्तस्य - अखिल सिद्धयः, सत्वावलंबनां नास्ति कातरत्वं, [ संवत् १९३९ का - चौमासा - शहर होशियारपुर. ] बादवारीशके लुधिहानसे रवानाहोकर जीरा - मलेरकोट-जिग्रामा- फिल्लोर - फगवाडा - और - जालंधर की सफर करते हुवे शहर होशिआरपुर गये, और संवत् (१९३९ ) की बारीश वहां गुजारी, इसचौमासेमें न्यायमुक्तावली ग्रंथ पढा, और उसमेंसे अनुमानखंड मुहजबानी याद किया, इनदिनों में महाराज नयेनये काव्य संस्कृत में बनाने लगे, चीठीपत्री लिखतेथे तो नये श्लोक बनाबनाकर लिखतेथे, जितने बडे पुरुषोके जीवनचरित लिखेजाते है उनसे ऐसी ऐसी बातें सीखने में आती है- जो हरेकशख्श के जीवनभर में काम आती है। और उनका जीवनचरित दुसरोकों इल्मकी तरक्की देता है, पेस्तरके चालचलन - और रीतरवाजकों सिखलाता है. स्मर्णशक्ति और हैर्यकों देता है. और तरहतरहके फायदेकों पहुचाता है, जिनकाजीवन नही लिखा गया उनकों कौइ जानता भी नही होगाकि - क्या थेऔर क्या होगये. इसलिखनेका मतलब यह हैकि - इन्सान अपने थोडे जीवनकों ऐसेकाममें लगावे जिससे अपनेकों और दुसरोकों फायदा पहुचे, [ संवत् १९४० का - चौमासा शहर विकानेर, ] बादवारीशके होशियारपुर से रवाना होकर - जालंधर - लुधिहाना अंबाला - सरहिंद - बनौली - वगेराकी सफरकरते देहली आये, और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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