________________
( २८६ ) तवारिख-तीर्थ-समेतशिखर. ( १८२५ ) माघशुक्ल (३) गुरौ-बिरानीगोत्रीय-शाह खुशालचंद्रेण-श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणपादुका-कारापिताप्रतिष्टिताच तपागछेधीरस्तु
नवमीटोंक तीर्थकर चंदाप्रभुस्वामीकी-इसमें-तीर्थकरचंदाप्रभुजीकेचरन तख्तनशीनहै. और उसपर लिखाहैकि-संवत् (१८४९) माघशुक्लपंचम्यां-बुधवासरे-श्रीचंद्रप्रभजिनचरण न्यासः कृतः यहसवटोंके पेस्तर शाह-खुशालचंदजी-विरानीगोत्र-तपगछ. वालोने संवत् ( १८२५ ) में मरम्मतकरवाइथी, मगर ब-सबव-गिरजानेके दोबारा-तिवारा-मरम्मतकरारपाइहै,-यहटोंक बहुतऊंचीबुलंद-और-उसकाचढाव-बडाकठिनहै, इसपरचढकरदेखोतो-मालूम होताहै मानो ! आस्मानमें चलेगये. समेतशिखरपहाडकी तमाम रवन्नक-और-केफियत यहांसें व-खूबी-नजरआतीहै, तरहतरहकी मेवाजातबनास्पति-और-खूशबू-चारोंतर्फ-महकरहीहै-तीर्थकर कुंथुनाथजीकीटोंकसें-यह-टोंक-करीवएककोशकेफासलेपर और वडीऊंची है. यहांसें उतरकर तीर्थकर-रिपभदेवजीकी टोंककों-जाना,
दसवीटोंक-तीर्थकर-रिषभदेवभगवानकी--इसमें तीर्थंकररिषभदेवमहाराजके चरन तख्तनशीनहै,-और-उसपर लिखाहैकिसंवत (१९४९) माघशुक्ल दुनकेरोज-समेतशैलपहाडपर-नीर्थकर रिषभदेवमहारानकी चरणपादुकाका जीर्णोद्धार-रायबहादूर धनपतसिंहजी साकीन मुर्शिदाबादने कराया. तीर्थकर रिषभदेवमहाराज अष्टापद पहाडपर मुक्तहुवेहै, मगर यहां उनकीचरनपादुका इसलिये तामीरकरवाइ गइकि-यात्रीको यहांभी उनकी जियारत हासिलहोजावे, थोडे अरसेकी बातहै इस टौंकपर ब-सवव-विजलीगिरजानेके तिवारामरम्मत किइ गइ, और संवत् (१९५८) में फिर हमारे हाथसें प्रतिष्टा हुइ है.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com