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________________ तवारिख-तीर्थ-सावथ्थी. (२२३,) खंढहेरपडे है, एकरौज वहथाकि यहांपर जवाहिरात और सोना-चांदीके ढेर लगतेथे, आज वहदिनहै चारोतर्फ झाडीमुखड-द्रख्तोकेझंड-और-जंगलहीजंगल नजरआताहै, किला सहेटमेटका विरान और उसमे तीर्थकर संभवनाथका मंदिर वगेरमूर्तिके खाली पडाहै, आजकल-न-कोइ यहांपर श्रावकहै-न-वो-रवन्नकहै, शिवाय ज्ञानीयोंके कौन कहसकताहैकि-किसकिस जमीनपर क्याक्या वनावबने और बनेगें, वारीशके दिनोंमें यहांपर अकसर जवाहिरातके नगीने-मोहर वगेरा-निकलआते है इससे मालुमहोताहै. यहांपर बडेबडे दोलतमंदलोग आवादहोगये, इसवख्त यहांपर एक चक्रभंडार-और-दुसरा कानभारी नामके दो गांव अलग अलग मौजूद है,-मानलो ! यह सबजमीन पेस्तर बडीरवनकपरथी और सावथीसे ताल्लुक रखतीथी,-... बडीबडी अजुवा वातें यहां होचुकी और बडेबड़े सखी दौलतमंद यहांपर पैदाहोचुके है,-तीसरे तीर्थकर संभवनाथ महाराज इसीसावथ्थीमें पैदा हुवेथे, चवन-जन्म-दीक्षा-और-केवलज्ञानये चार कल्याणक उनके यहांहुवे, जितारी राजा और सेनारानीकी कुखसे माघसुदी (१४) मृगशिरा नक्षत्रकरौज उनका यहां जन्महुवा, बहुत अर्सेतक उनोने सावथ्थीपर अमलदारी किइ. और दीक्षाके पेस्तर एकसालतक उनोने यहां खैरातकिइ, मृगशीर्ष सुदी (१५) के रौज दुनियाके एशआरम छोडकर उनोनेयहां दीक्षा इख्तियार किइ और कातिकवदी (५) मीकेरौज उनकोयहां केवलज्ञान पैदावा, इंद्रदेवता वगेरा उनकी सेवामें आतेथे तीर्थकर महावीरस्वामीने यहां चौमासा किया और कइदफे तशरीफलाये, तीर्थकर पार्श्वनाथजीके शासनके आचार्य केशीकुमार महाराजकी और तीर्थकर महावीर स्वामीके बडेचेले गौतमगणधरकी यहांपर . तेंदु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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