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________________ (१८८) गुलदस्ते-जराफत. २५-किसी जंगलमें एक सूअर चला आरहाथा, राहमें उसकों एक और मिला, सूअरने कहा-तुंवाद मुदतके आज मिला है, अबमें-चाहता हुं-आज तेरा और मेरा मुकाविला होजाय, वरना ! तुजको-में-यहांसे जाने-न-दुंगा, अगर-तुं ! लडना-नही चाहता तो कहदे-में-हार गया, शेरने कहा अबे ! सूअर । तुं मेरे सामने एक थप्पडका साथी है, क्या ! बकवाद कररहाहै. में-जंगलका बादशाह होकर तेरे जैसेके शाथ मुकाबिला करके क्या करूँ ! तुं ! मेरे मुकाबिलेके लाइक नही, फरजकरकि-मेने-तुजकों मारभी दिया तो मेरी इसमें कुछ तारीफभी नही, लोग कहेगे शैरने मूअरकों मारातो क्या बहादूरी किइ ? इसलिये-में-तुजसे लडना नही चाहता, वेशक ! तुं ! शहरमें जाकर कहदे, लोग इसबातको बखूबी जानतेहै कि-शैर-हरहालमे सूअरसें कभी-न-हारेगा, तुं-अगरलाख बातभी बनावे मेरा क्या ! बिगडेगा, असा कहकर शैरने अपना रास्ता लिया, गछ मूकर ! भद्रं ते-चद सिंहो मयाजितः पंडिता एव जानंति-सिंहसूकरयो बलं, १ __ [ दोस्तोंकि बातचित, २६-एक वख्तका जिक्र है रास्तेमें चलते वख्त-दोदोस्त मिले, एकने पुछा क्यों भाइ ! खेरियततो है, ? दुसरेने कहा आपकी महरबानीसे-में-दोरौज हुवे बुखारसे घिरा हुँ, दोस्तने कहा इसमें मेरी महेरबानी कैसी ? यूंक्यौं नही कहतेकि-मेने-बहुत कुछ खाना खालियाथा जिससे बुखारने घेरा है, तब चालाक दोस्त शर्मीदा हुवा और कहने लगा सायत ! ऐसाही होगा, एक शख्शकी भेंस मरगइ, जिसकोलिये वह रौने लगा, तब उसके एक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034925
Book TitleKitab Jain Tirth Guide
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUnknown
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages552
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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